संवेदनाओं
को शब्द देती कवितायें : सदाये दिल
रचनाकार
भी एक सामाजिक प्राणी होता है । उसे समाज के द्वारा जो कुछ भी अनुभव प्राप्त होता
है उसे वह अपनी रचना का वर्ण्य विषय बनाता है । अरशद जमाल द्वारा सद्य प्रकाशित
काव्य संग्रह ‘सदाये-दिल’ इसी
प्रकार के अनुभवों से भरा एक काव्य है । जिसको लेखक ने अनेक सुन्दर पद्यों से
सजाया है । इनकी शायरी में यदि इश्क
मोहब्बत की बातें हैं तो जिन्दगी की जद्दोजहद से जुझती कवितायें भी हैं ।
रोजमर्रा
की जिन्दगी के अनुभवों के बारे में अरशद साहब का ख्याल है ।
क्या
तुझ से शिकायत करें ऐ ज़िन्दगी हम
चन्द
ख्वाबों से दिल को बहलाने में लगे हैं ।
आज
जहाँ हर व्यक्ति पैसे के पीछे भाग रहा वहाँ पर कवि का कहना है-
मेरा
दिल है मेरी मिल्कियत यही रोशनी देगा
मुझको
कोई झूमर ना चाँद ना सितारा चाहिए ।
इस
पंक्ति को पढ़कर यह महसूस किया जा सकता है कि कवि को कभी-न-कभी वह दिन देखना पडा था
जब दुनिया का हर आदमी सिर्फ और सिर्फ आप मजा लेना चाहता है । आपके दु:ख में उसे
आनंदानुभुति होती है ।
मेरे
दर्द व ग़म पर तंज मत करो
यही
समझो इतनी खुशी अच्छी नहीं होती ।
बढ़
रहा है यहाँ कर्ज ज़िन्दगी का
पोशाक
ये उधार है समझता हूँ ।
अरशद
साहब अपनी प्रेयसी से कहते हैं कि मेरे हृदय में तुम्हीं ने प्रेम का दीपक जलाया
था और आज स्वयं ही दामन छुड़ा कर जा रही हो । अब यह तुम्हारे ऊपर है कि मेरे इस
निश्छल प्रेम को तुम कैसे देखती हो ।
तुम्हीं
से रौशन था रौज़ने-दिल में मोहब्बत का दिया
ये
तुम्हीं से बुझा है हो सके तो कुछ मलाल रखना।
आज
के समय में कोई किसी की पीड़ा को समझने वाला नहीं है । दुनिया का हर आदमी आप की पीड़ा
में मजा लेना चाहता है ।
रवा
रवी में तुम कई खुशफहमियों में मुब्तेला रहे
ज़हर
जो मैं पी रहा था तुमने जाम लिख दिया होगा ।
ख्वाहिशें
उम्मीदें मन्नतें और कई ख्वाब
इन
सबके बीच बिखरी सी रही ज़िन्दगी ।
खोकर
मैं जहाँ से निकला था बहुत सारा वक्त अपना
ज़िन्दगी
फिर उसी बज्म में मुझको लाये तो अच्छा है ।
कहीं
–न-कहीं लेखक की खुद्दारी झलक ही जाती है ।
ऐ
ख्वाहिश ज़मीर मैं छोड़ सकता नहीं
अब
यहाँ से हमारी राहें बदलती हैं ।
दिखावती
दुनिया से अरशद साहब को बड़ी चिढ़ सी रहती है ।
सहराये-जां
में बहती थी नदी फ़रेब की
क्या
बतायें गला प्यास से छिला रहता था ।
दु:ख
और सुख हर व्यक्ति के हिस्से में आता है । परन्तु प्रत्येक व्यक्ति को यह आशा रहती
है कि अगर आज अँधेरा है तो कल उजाला भी होगा ।
दर्दे-दिल
को दिल से छुपाकर रखा है मैंने
ख़ुशियों
का इमकान बचाकर रखा है मैंने ।
कभी कभी जीवन में ऐसा वक्त
आता है जब लगता है कि इतनी बड़ी दुनिया में हमारा कोई नहीं है तो हम खुद से ही
बातचीत करने लगते हैं।
रूठे
हुए तो हम थे पर क्या करते ‘अरशद’
अपने
आप को खुद ही से मना रहे थे ।
संसार में
बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो अपनी झूठ का पता चलने के बाद भी अपनी मक्कारी से बाज
नहीं आते हैं।
आइने
की ज़द में आ गये हैं सब झूठ पर
साज़िशें
हो रही हैं कि सच्चा दिखाई दे ।
हर व्यक्ति
को अपने गमों में एक सहारे की जरूरत होती है जिससे वह खुलकर अपनी बात कह सके।
खुशी
भी यहाँ भटक रही क़हक़हों के जंगल में
अब
किसी शाने पे सर रख के रोना चाहती है ।
जिंदगी के
बढ़ते हुए देते हुए कब लिखता है।
क्या
ज़िन्दगी और दिखायेगी मुझे
कितना
बिगाड़ कर बनाएगी मुझे ।
दुनिया के
दुख दर्द को झेलता हुआ जब व्यक्ति थक जाता है तो एक
दिन वह बोल ही देता है सब ठीक है अच्छा हूँ।
बुझ
गयी ताल्लुक़ात की वो आखिरी कंदील भी
अब
शहर में मैं किसी से रूठा हुआ भी नहीं हूँ।
निराशा के
वातावरण में व्यक्ति मौत को ही आसान समझता है।
गुज़रता
हुआ ये वक्त ठहर क्यों नहीं जाता
इतने
हादसों के साथ मैं मर क्यों नहीं जाता ।
अरशद ने
जिंदगी के उतार-चढ़ाव को बहुत करीब से देखा है।
भटक
रहा हूँ ज़िन्दगी की तलाश में
जो
कहीं मिल जाये तुम्हें तो मिलाओ मुझको ।
प्रेम में
रूठना मनाना तो लगा ही रहता है प्रेम के विषय में अरशद जमाल की राय है ।
इक
उम्र जो नाराज रहा मेरे इश्क से
वही
चेहरा अब मना मना सा लगता है ।
समाअत
इससे बेहतर क्या सुनेगी
तेरी
जबां पर मेरा नाम आए ।
दिखावे की मोहब्बत से जब
व्यक्ति ऊब जाएगा तो एक दिन वह कहे देगा।
अब
वो मुझसे बिछड़ जाये तो अच्छा है
मरासिम
का तरीक़ा बदल रहा है ।
हमसफर के साथ
होने पर बात ही कुछ और होती है।
अभी
तक तो ज़िन्दगी में उजाला रहा है
मेरे
हाथों में जो हाथ तुम्हारा रहा है ।
प्रत्येक
प्रेमी कोई इंतजार ताउम्र रहता है कि आज उसकी प्रेमिका से अनबन हो गई है तो कल हो
सकता है कि वह मान जाए ।
अब
भी उसकी वफ़ा पे नाज़ बहुत मुझे ‘अरशद’
काश
इसी ऐतबार से वो संभल जाती तो बेहतर था ।
नैसर्गिक
सौन्दर्य के प्रति आकर्षण और मोह प्रत्येक कवि की तरह इन्हें भी खूब रुचिकर लगता
है ।
कहीं
हूं मैं हमनशीं के कहीं हमसफर के साथ
दिल
है मेरा गांव में और जिस्म शहर के साथ।
कभी-कभी व्यक्ति सही होने के बाद भी गलत साबित कर दिया जाता है।
इस
क़दर होशमन्द दुनिया में रहना पड़ा मुझे
मैं
पागल नहीं था मगर पागल बनना पड़ा मुझे ।
हर रचनाकार अपनी जमीन से
जुड़ा होता है जो जमीन से जुड़ा नहीं होगा वह रचनाकार हो ही नहीं सकता।
लौटकर
अपनी ज़मीं से रिश्ते जोड़ लो ‘अरशद’
इस
गाँव की मिट्टी कुछ ना दे दुआ तो देती है ।
दुनिया के बारे में कवि की
राय है।
ये
बेवफा दुनिया
मैं
इसमें ढ़ल भी तो चुका हूँ।
अरशद जमाल की ग़ज़लों और नज्मों प्रेम और वियोग दोनों का चित्रण है ।
इनके अशआर जीवन के अनुभव भी हैं । इस संग्रह की कुछ नज्में जैसे-किसी वीराने में,एहसासे-जां, सुनहरे वक्तों की चाँदनी, उदासी, जीवन का सत्य, कशमकश,
नया साल मसीहा होती कैसी आदि नज्में इनके पहले काव्य-संग्रह ‘अक्से-ज़िन्दगी’ में भी देखने को मिलती हैं । जो
दोनों काव्य-संग्रह पढ़ने वाले को थोड़ा सा अटपटा महसूस करा सकती हैं । पर नज्में
अपने आप में बहुत ही बेहतरीन हैं इसमें कोई संदेह नहीं । यह एक पठनीय संकलन है जो
किसी भी कविता में रुचि रखने वाले को अपनी तरफ स्वयं ही आकर्षित कर लेता है । यह
काव्यसंग्रह अमेजन पर भी उपलब्ध है ।
समीक्षक-डॉ. अरुण कुमार निषाद
कृति
- ‘सदाये-दिल ’ काव्य संग्रह ।
कृतिकार
–
अरशद जमाल
प्रकाशक
–साहित्यभूमि प्रकाशन, नयी दिल्ली ।
प्रथम
संस्करण 2019 ।
मूल्य- 300 रू.।
पृष्ठ
संख्या-103
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