समकलीन
संस्कृत कविता की तरफ बढ़ते कदम
डॉ.अरुण कुमार निषाद
वैदिक
काल से लेकर आज तक जिस संस्कृत वाङ्मय की पताका आज संपूर्ण विश्व में फहरा रही हैं
उसी को आगे लाने का कार्य किया है ‘वीर नर्मद
दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय ने । इस विश्वविद्यालय ने जहां पिछले वर्ष आधुनिक
संस्कृत कथाओं को अपने पाठ्यक्रम में रखा । वही इस बार आधुनिक संस्कृत के समकालीन
रचनाकारों की कविताओं को अपने पाठ्यक्रम में रखकर बहुत ही प्रशंसनीय कार्य किया
है। पुस्तक के संपादकमंडल (डॉ.रीता त्रिवेदी और डॉ.नयना
नायक) तथा पुस्तक में शामिल सभी रचनाकार (डॉ.गौतमपटेल, डॉ.राजेन्द्र
नानावटी, डॉ.हर्षदेव माधव, डॉ.रवीन्द्र पण्डा, डॉ.ए. डी. शास्त्री, डॉ.रीता त्रिवेदी, डॉ.वसंत पटेल, प्रो.अभिराज राजेन्द्र मिश्र, प्रो. राधावल्लभ
त्रिपाठी, देवर्षि कलानाथ शास्त्री, डॉ.
रमाकान्त शुक्ल, डॉ.बनमाली बिश्वाल,डॉ.प्रवीण
पंड्या,डॉ.रूषिराज जानी, डॉ. कौशल
तिवारी,डॉ. स्नेहल जोशी) बधाई के पात्र हैं । मूर्धन्य
विद्वानों के साथ ही साथ नये रचनाकारों इस पुस्तक में देखकर एक सुखद अनुभूति हो
रही है । इन रचनाकारों की रचनाओं का समय-समय पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में अवलोकन
होता रहता है । यह पुस्तक खासकर उन शोधार्थियों और गवेषकों के लिए पाथेय होगा, जो आधुनिक संस्कृत पर शोध कर रहे हैं और उनको सामग्री उपलब्ध नहीं हो
पाती।
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