प्रेम की
अनुभूति का अनूठा संग्रह ‘तस्वीर-ए-दिल’
जीवन
के इस सफर में मनुष्य को कभी-न-कभी प्रेम की अनुभूति अवश्य होती है । यह प्रेम सफल
होता है या असफल यह नहीं कहा जा सकता परन्तु प्रत्येक प्राणी अपनी जिन्दगी में
अपने विपरीतलिंगी के प्रति आकर्षित अवश्य होता है । यह प्रेम कभी गुदगुदाता है तो
कभी रुलाता है,
कभी संयोग कराता है तो कभी वियोग कराता है, इसमें
कभी बेवफाई होती है तो कभी वफाई भी । ऐसे ही अनमोल शब्दों की माला को काव्य के रुप
में पिरोया है युवाकवि, लेखक और आलोचक डॉ.अरुण कुमार निषाद
ने अपने सद्य प्रकाशित नवीन काव्यसंग्रह ‘तस्वीर-ए-दिल’
में ।
कलमकार
शब्दों का मोहताज नहीं होता. शब्द शिल्पी बनकर जब वह अपनी सोच की आकृति को कागज पर
अंकित करता है तो शब्द बोलने लगते हैं ।
जब कोई अपना
नहीं ज़माने में
क्या रक्खा
है दिल लगाने में ||
अरुण
जी की कविता को पढ़कर यह महसूस किया जा सकता है कि उ न्होंने समाज और जिन्दगी को बड़े
बरीकी के साथ जिया और पढ़ा है । उन्होंने जीवन जो देखा, समझा
और जाना उसे शब्दों में बाँध किया है । अभिव्यक्त करने की अदायगी रचनाकार की अपनी
निजी पहचान बन जाती है. कविता लिखना एक क्रिया है, एक अनुभूति
जो मन की भावनात्मक हलचल से उपजती है, जैसे किसी शान्त
स्वच्छ झील में एक कंकड उछाला जाता है तो पानी में तरंगें उठने लगती हैं । वैसे भी
रचनाकार को कुछ ऐसे ही क्षण क़लम उठाने पर मजबूर करते हैं।
मेरे दोस्त
तुझको ये क्या हो गया |
तेरा रुख़
कितना बदल हो गया ||
वफ़ा मैंने
की है वफ़ा चाहता हूँ |
न जाने तू
क्यों बेवफा हो गया ||
कविता
देखा जाय तो संवेदनशील हृदय की पारदर्शी अभिव्यक्ति है । शब्द उस कविता के
सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि । यहाँ क़लम उन पलों की ज़ामिन बनकर दु:ख-सुख, मिलन-विरह,
के बीच अपने बाहर-भीतर के सफ़र की कश्मकश में अपनी चाहत व्यक्त कर
रही है । देखिये उनकी बानगी कैसे जिरह कर रही है उस अपनी पीड़ा के आनन्दमयी सुख के
लिए ।
मुहब्बत का
मुझको सिला ये मिला है |
मेरा प्यार
ही अब सज़ा हो गया ||
मेरे ज़ख्मो
को चोट लगती है हवा मत दो
अब मुझे मौत
ही दे दो और सजा मत दो ||
दिल के
जख्मों को दिखायें किसको |
अपने इस ग़म
को बतायें किसको ||
मानवीय
मिलन, विरह, उत्कण्ठा, लालसा,
उल्लास, आनन्द, व्यथा
आदि के अनेक चित्र उनकी कलात्मक शब्दावली के माध्यम से ज़ाहिर है ।
तुमको
मैं दिल में छुपाना चाहता हूँ ।
मैं तुम्हें
अपना बनाना चाहता हूँ ।।
उतरती गयी
दिल में वो धीरे-धीरे |
मेरे दिल को
वो भा गयी धीरे-धीरे ||
एक
कुशल कारीगर की तरह एक एक ईंट करीने से सजाकर इस काव्य-भवन का निर्माण करना एक कला
है, एक साधना है, मन में उठे भाव शब्द-सौंदर्य तथा लय का
माधुर्य दर्शा रहे हैं । उनकी क़लम की तहरीर में शामिल है प्रेम, बेबसी, आशा, निराशा, मायूसी, हौसला और उनकी अनगिनत यादें जिनसे निबाह
करती आई है फ़क़त एक क़लम ! जो उनके हृदय गाथा के एक दर्दनाक रूदाद को अपनी चरम सीमा
पर विलाप करते हुए देख कर अपनी रवानी में लिखती है-
इक नई दुनिया
बसाने लग गया है आदमी
आदमी को ही
सताने लग गया है आदमी ।।
छुप छुपकर पलकों को भिगोना, ये तो अच्छी बात नहीं
दिल की बातें दिल में छुपाना, ये
तो अच्छी बात नहीं |
अरुण
जी की रचनाओं के झरोखे के माध्यम से उनके जीवन के भावनात्मक पहलुओं से परिचित होने
की हर संभावना पूर्ण हुई है । कितनी सरलता से संवाद करती है उनकी कविता क्योंकि
उन्होने जीवन की सार्थकता का परिचय पा लिया है—
इक किनारा
चाहिए
कोई सहारा
चाहिए
इस रेतीली
जिन्दगी में
दोस्त प्यारा
चाहिए।।
इसी
भाव के कुछ और शेर-
प्यार के
मीठे बोल जरा बोल दो
मेरेकानों
में अमृत जरा घोल दो
जिन्दगी का
है मेरे ठिकाना नहीं
बंद होठों को
अपने जरा खोल दो ||
और
आगे इसी पक्ष का एक और पहलू उजागर करते हुए लिखते हैं—
मेरा अहसास मेरा प्यार हो तुम
दिल की धड़कनों का इंतजार हो तुम
मैं कैसे बताऊँ 'अरुण' तुम को
मेरी खामोशियों का इजहार हो तुम ।।
अरुण
की सभी रचनायें अपने समय की माँग है, संग्रह की सभी रचनायें एक ही
समय में नहीं लिखी गई है इसलिये ये सब एक ही मूड की रचनायें नहीं है लेकिन सभी का
ग्राफ़ व्यापक है | बड़ी-बड़ी बात कहती छोटी-छोटी कविताओं का
संग्रह है यह | कहीं- कहीं तो अरुण इतने कम शब्द इस्तेमाल
करते है कि लगता है ये शब्दों की कंजूसी है, लेकिन जब उसी
रचना को दूसरी और तीसरी बार पढ़ो तब अहसास होता है कि यह शब्दों की कंजूसी नहीं
बल्कि शब्दों की फिजूल खर्ची पर आवश्यक नियन्त्रण है । देखिये कम शब्दों की बड़ी
कविता -
दुनियाँ
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दिखावटी
मोहब्बत
झूठी
मुस्कराहट
अनौपचारिक
फ़िक्र
क्या -क्या
रंग
दिखाएगी
ये दुनिया
हमको ।
अरुण
की कविता पढ़ने पर एक बार तो आप सोचने पर मजबूर हो जाओगे कि यह शख्स कवि है या
चित्रकार ?
कविता में हालात का चित्र कुछ यूं खींच देते है डा.निषाद कि वह कवि
की कविता नहीं बल्कि पाठक की कविता लगने लगती है, यही इनकी
सफलता का परिचायक है
15.मुवक्किल
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सिविल कोर्ट से
निकला आदमी
खोजता है
दुकान पर
कुछ खाने को......
इनका
काव्यसौन्दर्य, कथ्य और शिल्प का अद्भुत तालमेल पाठकवर्ग को अपने दिल की अभिव्यक्ति लगने
का आभास देगी इस बात का मुझे पूरा यक़ीन है । पुस्तक के अलावा इनकी रचनायें सोशल
मीडिया और पत्र-पत्रिकाओं में भी पढ़ी जा सकती हैं । इसके साथ ही अरुण जी मंच पर भी
काफी सक्रिय रहते हैं । डॉ.निषाद जी को इस काव्य कृति के लिए मेरी दिली मुबारकबाद
और शुभकामनाएँ । पुस्तक अमेजन पर भी उपलब्ध है । जिसका लिंक है-
https://www.amazon.in/dp/1648690734/ref=cm_sw_r_wa_awdo_t1_aG6CEbKNZ2TA5
समीक्षक- काली सहाय
समीक्ष्य पुस्तक - ‘तस्वीर-ए-दिल’ काव्य संग्रह ।
रचनाकार – डॉ.
अरुण कुमार निषाद
प्रकाशक – एक्स-प्रेस
पब्लिशिंग, यूनाइटेड किंगडम ।
प्रथम
संस्करण - 2020
।
मूल्य- 160 रू.। / पृष्ठ संख्या-158
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