मुहब्बत का आख्यान : रसपूरकम्
(संस्कृत उपन्यास)
डॉ.अरुण
कुमार निषाद
‘रसकपूरम्’ का कथानक जयपुर राज्य की एक मध्यकालीन घटना पर आधारित है । जयपुर के मुगलकालीन राजा जगतसिंह का प्रेम ‘रसकपूर’ नाम
की नृत्यांगना से हो जाता है । वे अपना सब कुछ उस पर न्यौछावर कर देते हैं । उसे
आधा राज्य तक देने का निर्णय कर लेते हैं । अन्त:पुर के और सामन्तों के षड्यन्त्रों
के बावजूद रसकपूर का वर्चस्व वर्षों तक पूरी रियासत पर रहता है, किन्तु धीरे-धीरे षड्यन्त्रकारियों
की योजनाएं सफल हो जाती हैं और कपूर को नजरबंद कर दिया जाता है । उसे दयनीय
स्थितियों में जीवन के अंतिम दिन बिताने होते हैं ।
(सन् 2000 का राष्ट्रपति - सम्मान प्राप्त करते हुए पं.मोहनलाल शर्मा पाण्डेय)
हिन्दी में श्री उमेश
शास्त्री के लिखे इस उपन्यास का अनुवाद ‘रसकपूरम्’ नाम से पंडित मोहनलाल शर्मा ‘पाण्डेय’ ने किया है । होने को तो यह अनुवाद है किन्तु यह शैली, वाक्यविन्यास और
वर्णन-प्रसंगों में किया पूर्णत: मौलिकता लिए
हुए है । कथा का आधार-पात्र लेकर श्री पाण्डेय अपनी ललित और अलंकृत शैली
में वर्णनों कलात्मक विस्तार देते हैं वाक्यों का विस्तार कर उन्हें अलंकृत
संस्कृत गद्यकाव्य का सा रूप देते हैं तथा कहीं-कहीं पद्यों को गद्यकाव्य का सा
रुप देते हैं और कहीं-कहीं पद्यों का भी समावेश कर देते हैं । श्री पाण्डेय मूलत:
संस्कृतकवि हैं । भाषा पर उनके अधिकार और काव्यरचना
-कौशल का प्रमाण इस उपन्यास में
स्थान-स्थान पर मिलता है ।
अंग्रेजी, गुजराती आदि आठ भाषाओं में अनूदित एवं मूलरूप में
हिन्दी भाषा में लिखित इस उपन्यास के लेखक संस्कृतमनीषी आचार्य उमेश शास्त्री ने
संस्कृत अनुवाद के सन्दर्भ में भूमिका लिखते हुए लिखा है :-
“रसकपूर के अनुवाद में मौलिकता है। ऐसा अनुवाद देखने में नहीं आया है।
संस्कृत साहित्य के गद्य क्षेत्र की अनूदित कृतियों में सहज रूप से शीर्ष स्थान को
प्राप्त करना ही इस शैली की विशेषता और अनुवादक की मौलिकता कही जायेगी ।”
मूल लेखक-आचार्य उमेश शास्त्री
मूल लेखक-आचार्य उमेश शास्त्री
संस्कृत
अनुवादक –आचार्य मोहनलाल शर्मा पाण्डेय
प्रकाशन
वर्ष–
1993 ई.
प्रकाशक–
व्यास बालाबक्ष शोध संस्थान, जयपुर, राजस्थान।
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