डॉ.अरुण
कुमार निषाद
भारतीयदलितकविता
का अनूदित संकलन '
सूर्यगेहे तमिस्रा' गुजराती दलित साहित्य
अकादमी द्वारा प्रकाशित हुआ है। संस्कृत में इसका अनुवाद डॉ.ऋषिराज जानी ने किया है
जिन्हें संस्कृत में बाल साहित्य लेखन के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त हुआ
है । यह संकलन में गुजराती, हिंदी, मराठी,
असमिया, पंजाबी और बंगला आदि भाषाओं के 34
साहित्यकारों की रचनाएँ है । संस्कृत में दलितविमर्श का यह सर्वप्रथम संकलन है । डॉ.ऋषिराज
जानी इसके विषय में कहते हैं कि मेरे लिए यह संकलन सत्यकाम जाबाल, महिदास ऐतरेय, विदुर, व्यास और
सूत पौराणिक के लिए किया गया शब्दतर्पण है।
इस
रचना के बारे में हरीश मंगलम् जी का कथन है कि- “संस्कृत न केवल देवों
की भाषा बन कर रह गई है बल्कि सर्वजन समुदाय की बन गई है ।”
अस्माकं दासत्वस्य यात्रा
प्रारब्धा भवति
युष्माकंं जन्मन:
अपि च
अस्यअन्तोऽपि भविष्यति
युष्माकम् अन्तेन ।
अथ किम् स्वामिन्! श्रमिकोऽस्मि
दैनिक: श्रमिक:
किम् उक्तं? दलित:?
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