सोमवार, 20 मार्च 2023

समीक्षित पुस्तक- उज्जयिनीवीरम् (रूपक संग्रह) लेखक- डॉ.प्रवीण पण्ड्या

अभिनव अभिव्यञ्जनाओं की अभिनव अनुभूतियाँ : उज्जयिनीवीरम्

समीक्षित पुस्तक- उज्जयिनीवीरम् (रूपक संग्रह)
लेखक-
डॉ.प्रवीण पण्ड्या 

समीक्षक- डॉ.अरुण कुमार निषाद
प्रकाशक-
रचना प्रकाशन, जयपुर
संस्करण वर्ष-
2022 ई.
मूल्य- रु.
100/-
पृष्ठ संख्या-
64


 

डॉ.प्रवीण पण्ड्या हमारे समय के प्रख्यात कवि,आलोचक और नाटककार हैं |आप राजस्थान के एक इण्टर कालेज में प्राचार्य पद को सुशोभित कर रहे हैं | अभी हाल ही में आप द्वारा लिखित रूपक संग्रह “उज्जयिनीवीरम्” प्रकाशित हुआ है | इस संग्रह में तीन एकाकियाँ हैं- 1.बलिदानम् 2.का ममाभिज्ञा का च तव सत्ता 3.उज्जयिनीवीरम्|

बलिदानम् यह पौराणिक आख्यान पर आधारित एकांकी है | इसमें महाराज बलि की दानशीलता का निरूपण किया गया है | इस एकांकी में कुल 9 दृश्य हैं | प्रथम दृश्य में बलि का जन्म, द्वितीय में बाल्यावस्था में ही दानशीलता, तृतीय में माता-पिता (विरोचन) और बलि का संवाद, चतुर्थ में बलि आदि के शिक्षा समाप्ति का वर्णन,पञ्चम में भारतभूमि की महिमा का वर्णन,पष्ठ दृश्य में बतलाया गया है कि राष्ट्रहित सर्वोपरि होना चाहिए, सप्तम दृश्य में दो व्यक्तियों के वार्तालाप से बलि के प्रजाहित के विषय में जानकारी मिलती है, अष्टम दृश्य में बलि के गुरू शुक्राचार द्वारा वामन भगवान का परिचय दिया गया है, और अन्तिम नवम दृश्य में भगवान वामन द्वारा बलि के आशीष का वर्णन है |

इस एकांकी में दान की महत्ता को दिखाया गया है |

पय: पीयते तैर्यजनन्या न बालै –

र्जनन्य: कृशाङ्गा यदा दु:खिताश्च |

ऋतूनां प्रकोपे न वै सन्त्युपाया

दयाभावनाऽत्लास्ति तेषां कृते वा ||पृष्ठ 25

x                x                x

मम द्वारे जगन्नाथो हस्तौ प्रसार्य संस्थित: |

भवेत्तदावायो: कस्य दानेऽत्र हि पराजय: ||22||पृष्ठ 32    

डॉ.प्रवीण पण्ड्या ने भारतभूमि की महिमा का भी गान किया है-

योगभूमिर्महाभूमि: सदा जयतु भारती |

वेदभूमि: स्मृतेर्भूमि: सदा जयतु भारती ||14||

ऋषिभिरुच्यते यत्र सदा जयतु भारती

सदा जयतु संसारे भारत्यान्वितभारती ||15||पृष्ठ 27

कवि ने राष्ट्र हित को सर्वोपरि माना है |

नश्यन्तु केवलं दुष्टा:, जना जीवन्तु निर्भया: |

चिन्ता राजजनानां न यद्भाव्यं तद्भवेत्खलु ||15||पृष्ठ 30       

मनुष्य का यश ही होता है जो जन्म जन्मान्तर तक रहता है | बाक़ी इस संसार में सब नाशवान है|

न देहेन न राज्यं, न लक्ष्म्या स्थीयते सदा |

प्रापत्व्या कीर्तिरेकात्र, जगति चिरजीविनी ||21||पृष्ठ 31  

अहंकार के दुष्परिणाम को भी इस एकांकी में बताया गया है कि अहंकार होता तो सूक्ष्म है किन्तु गड्ढे में गिरा देता है- ‘‘सूक्ष्मोऽप्यहंकारो गर्ते पातयति |’’ पृष्ठ 33

इस एकांकी में श्लोकों के क्रम संख्या में टंकण की गलती नजर आती है |  एक स्थान पर शुक्राचार्य के कथन में ‘‘श्रुतं स्यात् - स्वतः प्रमाणं परतः प्रमाणं, किरांगना यत्र गिरो गिरन्ति’’ यह उक्ति खटकती है क्योंकि यह उक्ति आदि शंकराचार्य और मण्डनमिश्र विवाद से जुडी हुई है जो बहुत काल बाद के हैं।

का ममाभिज्ञा का च तव सत्ता –यह एकांकी रूपक पाश्चात्य “मोनो एक्ट” शैली में लिखित है । बांग्ला रंगमंच में एकल अभिनय की परम्परा बहुत पुरानी है | ‘बाऊल’ एक तरह से एकल नाट्य ही है | प्राचीन रूपक भेद भाण से भी इसका कुछ-कुछ साम्य कहा जा सकता है| इसमें केवल एक पात्र ही दर्शकों के समक्ष आकर सम्पूर्ण नाट्य का अभिनय करता है |

इस एकांकी में मतदान के महत्त्व को बतलाया गया है | रूपककार का कहना है कि जनता को धर्म-जाति इत्यादि से ऊपर उठकर राष्ट्रहित के लिए वोट (मत) देना चाहिए |

“.....स्वपादयो: परशुं न प्रहरिष्यामि |.....” पृष्ठ 42

जब मत का केवल दान होगा, उसको बेचा नहीं जायेगा तभी तो सहीं अर्थों में चुनाव होगा-

‘‘दानं करिष्यति चेद् विजेष्यति। विक्रयं विधास्यति चेत्त्वं पराजयं प्राप्स्यति, ते जयं लप्स्यन्ते।’’पृष्ठ 41

डॉ.प्रवीण पण्ड्या कहते ही कि हे राजनेताओं ! हम तुमसे न धन,शराब आदि तो माँग नहीं रहे, हम तो तुमसे केवल मूलभूत आवश्यकता की वस्तुओं की इच्छा करते हैं जो जनता के लिए जरुरी है |    

“.....नाहं याचे सुरां  नाहं याचे यवागूम् | याचेऽहं कुल्यासु जलं कृषिकर्मणे .......|”पृष्ठ 42

यहाँ अवधी की एक कहावत याद आती है –“कच्ची (महुए की शराब) दारू कच्चा वोट, मुर्गा दारू पक्का वोट|”       

 उज्जयिनीवीरम्-उज्जयिनीवीरम् आठ दृश्यों की एक एकांकी है | यह एकांकी फ्लैशबैक शैली में लिखित है | इसमें राजेश परमार, नरेन्द्र और नीरज निषाद तीन प्रोफेसर मित्र एक राष्ट्रीय संगोष्ठी में भाग लेने जाते हैं | जहाँ रात्रि विश्राम के समय प्रो.राजेश प्रो.नरेन्द्र और प्रो.नीरज को एक कहानी सुनाते है | जिस कहानी का नाम होता है-“उज्जयिनीवीरम्” | पूरी एकांकी का घटनाक्रम इसी कहानी के आसपास घूमता है |       

इसमें ग्रामीण परिवेश में फैले जादू-टोने, तन्त्र-मन्त्र आदि  का भी वर्णन किया गया है |

सूत्रधार:-अहो, ध्वनिरियं तु देवपटहस्य|आर्ये, अन्तर्हितौ भवेव | महाकालपुरीयं वर्तते कापालिकानां क्रियास्थाली |पृष्ठ 46

वीरम:-तिष्ठ,तिष्ठ, मा मा विलप,एष हन्मि पापान्, (विकारालोग्रतया)-देहि मे चषकं परिचरा: |देहि मे चषकम् |

(एकेन हस्तेन चषकं गृहीत्वा गट्गटागट्ध्वनिना पिबति,अपरेण च माषकणान् प्रहर्तुं गृह्णाति |सहसैव धरमकुम्हारस्य पत्नी मस्तकं घूर्णन्ती भयानकध्वनिना पूर्वं रोदिति, पश्चाच्च भीषणप्रतिवादमुद्रया स्वयं माषकणान् गृहीत्वा वीरस्य पुरतो युद्धाय करोति आह्वानम् |पृष्ठ48

इन एकांकियों में लेखक ने स्थान-स्थान पर प्रसंगानुसार सुन्दर सूक्तियों और मुहावरों को भी स्थान प्रदान किया है |

स्वपादयो: परशु: न प्रहरिष्यामि | अर्थात् अपने पीरों पर कुल्हाड़ी नहीं मारूँगा |

अहो कालस्य कुटिला गति; |पृष्ठ 28

गणिका कामोपभोगं ददाति, न तु प्रेम |पृष्ठ 58

पापं तु गुप्तं तिष्ठति,प्रकाशस्तु तद्विपाकस्य भवति |पृष्ठ 59

इसी भावभूमि से मिलता –जुलता एक नाटक हिन्दी में प्रोफेसर रवीन्द्र प्रताप सिंह (प्रोफेसर अंग्रेजी विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय) ने ‘शेक्सपीयर की सात रातें’ नाम से लिखा है | इसमें भी सात प्रोफेसर (प्रो.इरशाद,प्रो.गोविल,प्रो.रेडियोवाला,प्रो.शबनम,प्रो.माशातोषी, प्रो.ओ.कॉनर,डॉ.डेवीज और एक शोधछात्र (सिकन्दर)लन्दन की एक संगोष्ठी में भाग लेने गए होते हैं | इस संगोष्ठी का विषय होता है पोस्टमार्डनिज्म एण्ड शेक्सपीयर’ |  

इस नाटक में भी यत्र-तत्र भूत-प्रेत जादू-टोने का  वर्णन है |

 चुड़ैले अपने वस्त्र निकाल-निकाल कर फेंकने लगती हैं, आकाशीय बिजली चमकती है, आकाश से रक्त की वर्षा होती है | चुड़ैले अधिक उर्जान्वित होकर पावस नृत्य करती हैं | प्रोफेसरगण मूर्च्छित होकर गिर पड़ते हैं | अब और घना अन्धकार हो गया है, यदा कदा बरसते हुए रक्त की बूँदे चमक जाती हैं | चुड़ैलों के स्वर सुनाई देते हैं |पृष्ठ 26-27

मृत उज्जयिनी वीर की तरफ ही शेक्सपीयर की आत्मा को भी अजर अमर अविनाशी दिखाया गया है |

किसी अज्ञात द्वीप पर शेक्सपीयर का दरबार लगा है | पीछे समुद्र की गर्जन सुनाई देती है |

समय : रात 1:30 बजे

शेस्पीयर ने काला गाउन पहन रखा है | वह कंकाल के सिंहासन पर बैठे हैं | वातावरण में तीक्ष्ण गन्ध है | मंच पर पीला प्रकाश है.... |पृष्ठ 45

‘बलिदानम्’  एकांकी में भारतीय भारतीय संस्कृति की महत्ता दिखाई गयी है और ‘शेक्सपीयर की सात रातें’ में भी |

शेक्सपीयर जिस देश की संस्कृति में दूर्वा को सौभाग्य और मंगल का प्रतीक माना गया हो, भला वह संस्कृति किसी के मिटाये क्यों मिटेगी? पृष्ठ 53

एरियल जब कैलिबल को पीट रहा होता है तब प्रोफेसर शबनम उससे कहती हैं |

प्रो.शबनम- अदृश्य आत्मा! कौन हो तुम? देखो, हम अन्याय नहीं सहन करते | हम भारत के लोग.... हम बराबरी में विश्वास करते हैं | हमारा संविधान समता का मूलाधिकार देता है हमें| हम अन्याय नहीं होने देंगे शोषण के विरुद्ध अधिकार है सबका- विश्व के सभी नागरिकों को | बोलो कौन हो तुम, जो पीट रहे हो कैलिबन को |पृष्ठ 16

रुपककार डॉ.पण्ड्या जी संगीत शास्त्र से भी परिचित हैं |

दूरतो झल्लरीनाद: श्रूयते |पृष्ठ 22

सूत्रधार-अहो,ध्वनिरयं तू देवपटहस्य |पृष्ठ 46       

समकालीन संस्कृत जगत में डॉ.प्रवीण पण्ड्या एक प्रयोगधर्मी, युगद्रष्टा, नव्यशैली के प्रवर्तक विश्व कविता के प्रवाहों को संस्कृत में प्रवाहित करने वाले सशक्त ‘अंगुल्यग्रगण्य एवं एक महिमामंडित स्थान पाने वाले 21वीं शताब्दी के प्रतिनिधि विलक्षण रचनाकार हैं | उनके इस संग्रह के लिए अनेकश: बधाईयाँ |    

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