आजादी
की लड़ाई में हांशिए के लोग : चैन कहाँ अब नैन हमारे
प्रो.
रवीन्द्र प्रताप सिंह ने स्वतंत्रता संग्राम इतिहास कि- एक घटना (वीरांगना उदा
देवी के जीवन चरित्र को, स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष
को,उनकी शहादत को) को जिस प्रकार से नाटकीय साँचे में ढाला
है काबिले तारीफ है। प्रो.सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं।
सन्
1857 की क्रांति में देश प्रदेश का ऐसा कोई कोना नहीं बचा था कि जिसने इस यज्ञ
में अपना योगदान न दिया हो। स्त्री, पुरुष, जाति पाति ,ऊँच नीच, धर्म आदि
का सारा भेदभाव मिट गया था। सबके दिलों
दिमाग में सब एक ही बात थी कि किसी भी प्रकार हमको इस गुलामी से आजाद होना है और
भारत को अंग्रेजों से स्वतंत्र कराना है।
सन्यासी
कहता है कि-हम बढ़े अपनी डगर पर/शत्रुओं को भस्म कर दें।
भारत
की महिलाएं भी पुरुषों से कम नहीं हैं-
गोरे
हट जा,
बच
जा निकल जा
आवत
है तेरो काल!
मिलिहै
अगर तू डगर मा
देहौं
सर तोरा काट!
नाटक
में अवधी,
हिन्दी के गीतों का बहुत ही सुन्दर प्रयोग हुआ है। कहीं-कहीं बीच
में उर्दू के शब्दों का भी प्रयोग देखने को मिल जाता है जो यह बताने के लिए काफी
है कि प्रो.सिंह केवल अंग्रेजी के ही नहीं बल्कि कई अन्य भाषाओं के भी अच्छे
जानकार हैं। गाँव कटाई लोकगीत का बहुत ही सुन्दर वर्णन है।अब तो लोकगीत गाँवों से
भी पालायन कर चुका है। इस नाटक के माध्यम से नयी पीढ़ी को अपने लोकगीत की भी
जानकारी होगी।
समीक्षक-डॉ.अरुण
कुमार निषाद
पुस्तक-चैन
कहां अब नैन हमारे
लेखक-प्रो.रवीन्द्र
प्रताप सिंह
प्रकाशन-सबलाइम
पब्लिकेशन्स, जयपुर।
संस्करण-2018
मूल्य-75रुपया
पेज-24
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