कोरोना
वायरस पर आधारित कविताओं का अनुपम काव्यसंग्रह
“कविता
सच्ची भावनाओं का चित्र है, और सच्ची
भावनाएँ चाहे सुख की हों या दु:ख की, उसी समय उत्पन्न होती
हैं जब हम सुख या दु:ख का अनुभव करते हैं ।”
-मुंशी
प्रेमचन्द
एक वैश्विक महामारी जिसने सम्पूर्ण विश्व को
देखते-देखते अपने आगोश में ले लिया । संसार की बड़ी-बड़ी महाशक्तियाँ भी इसके
सामने घुटने टेकने पर मजबूर हो गई। ऐसे
में कलमकारों की लेखनी अपने वश में रह नहीं पाई और उन्होंने अपने दिल की बात कलम
द्वारा कागज पर उतार ही दिया । इन्हीं भावों से ओतप्रोत है यह साझा काव्य संकलन “कोरोना-विजय”
। जिसमें सम्पूर्ण भारतवर्ष के मूर्धन्य विद्वानों के साथ-ही-साथ नवोदित
कवियों एवं कवयित्रियों को भी स्थान दिया गया है । जिनकी लेखनी ने कोरोना
(कोविड-19) पर, लॉकडाउन पर कुछ-न-कुछ लिखा है । वह चाहे छन्दबद्ध रचना हो या मुक्तछन्द
सभी को इस काव्य संग्रह में यथोचित स्थान प्रदान किया गया है ।
डॉ.अरुण कुमार निषाद का नवीन साझा काव्य संग्रह
नोशन प्रेस यूनाइटेड किंगडम से प्रकाशित हो गया । “कोरोना विजय” नामक इस काव्य
संग्रह में संपूर्ण भारत के 31 कवियों-कवयित्रियों की कविताओं को इसमें शामिल किया
गया है जिन्होंने कोरोना वायरस, लाक डाउन पर कविता,
गजल, दोहे, मुक्तक आदि
लिखे हैं । यह पुस्तक अमेजन पर उपलब्ध है ।
कवि हरिनारायण सिंह हरि लोगों अपनी
कविता माध्यम संदेश देते हैं कि इस आपसी मनमुटाव को हम बाद में सुलझा लेंगे । पहले
हमें कोरोना जैसी महामारी से बचना है ।
यह कोरोना का
रोना छोड़ो,
डट जाओ,
इससे लड़ना है
मित्र! आज झटपट आओ ।
आपसी
मनोमालिन्य,
बोध कर लेंगे हम ।
रे अभी साथ
दो,फिर विरोध कर लेंगे हम ।
सुल्तानपुर
के प्रसिद्ध शायर अरशद जमाल कहते हैं कि आदमी को इस लाकडाउन में तन्हा महसूस नहीं
करना चाहिए । उस समय का सदुपयोग करना चाहिए । अच्छे-अच्छे साहित्य पढ़ना चाहिए ।
कोई मन पसन्द कार्य करना चाहिए ।
"कहां हूं तनहा मैं "
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कहां
हूं तनहा मैं
ये
किताबें
ये 'होरी ' ये 'धनिया'
अभी
लिपट पड़ेंगे मुझसे
गांव
की सोंधी महक के साथ
डी.ए.वी.
कालेज देहरादून के संस्कृत प्रोफेसर और कवि डॉ.राम विनय लिखते हैं ।
मोहब्बत
को बहुत मज़बूर करने आ गयी है,
हिदायत
को यहाँ मशहूर करने आ गयी है,
बड़ी
ही बदगुमां है, बदनज़र है, बदबला भी
कॅरोना
दिल को दिल से दूर करने आ गयी है।
प्रो.ताराशंकरशर्मापाण्डेयआचार्य साहित्य
विभाग,
पूर्व विभागाध्यक्ष, जगद्गुरु रामानन्दाचार्य
राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर, राजस्थान ।) लिखते हैं-
रात
चाँदनी महफ़िल सजी
सम्मिलित
हुए कई देश
छूटे
कुछ, बुलाये आ गये
देखो
नये अतिथि विशेष
दिल्ली
के युवा कवि युवराज भट्टराई (साहित्य
अकादमी युवा पुरस्कार विजेता) लिखते हैं-
महान आपत्ति
प्रचण्ड है अभी,
त्रिलोक में
ये लगती भयावनी।
अजीब-सी
व्याधि प्रवर्धमान है,
अतः रहो रे
गृह में प्रजा सभी।।1
लखनऊ
के मशहूर कवि मुकुल महान शहरों से गाँवों की तरफ पलायन करने वाले मजदूरों की पीड़ा
को कुछ इस तरह व्यक्त किया है ।
अपनी जीवन डोर थाम कर ,
होकर
के मजबूर चल पड़े ।
शहरों
की आपाधापी में ,
गाँवों
को मजदूर चल पड़े ।।
एक
अन्य ग़ज़ल में मुकुल जी कहते हैं-
बेशक थोड़ा डर में रहिए ,
लेकिन
अपने घर में रहिए ।
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आसमान
में उड़ने वालों ,
अपनी
ज़द और पर में रहिए ।
प्रो. रवीन्द्र प्रताप सिंह (प्रोफेसर, अंग्रेजी विभाग,
लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ ) अपनी कविता में लिखते हैं कि बहुत दिन नहीं है
। हम जल्दी ही इस महामारी से उबर जायेंगे । बस सभी मनुष्यों को थोड़े से धैर्य की
जरुरत है ।
जीत
रहा भारत ये विपदा ,
बस
थोड़ी सी और कसर है ।
थोड़ी
दृढ़ता और चाहिये,
डॉ.
अलका सिंह, ( असिस्टेंट प्रोफेसर, अंग्रेजी विभाग, डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय
विधि विश्वविद्यालय, लखनऊ) कोरोना के लिए दैत्य शब्द प्रयोग
करती हैं । वे लिखती हैं कि- हम सभी को कुछ दिन अपने-अपने घरों में रहने की जरुरत
है । यह दैत्य कोरोना अवश्य ही हारेगा ।
क्वारंटाइन
शब्द नहीं ,
संयम
का पर्याय कह लीजिये ।
इस
महादैत्य से लड़ने में ,
ऊर्जा
का संचार कह लीजिये ।
एकांतवास
अपनी संस्कृति है,
संघर्ष
हेतु मन की स्थिति है ।
डॉ.अरुण कुमार निषाद असिस्टेण्ट प्रोफेसर(संस्कृतविभाग,
मदर टेरेसा महिला महाविद्यालय,कटकाखानपुर, द्वारिकागंज,सुल्तानपुर) अपने तांका छन्द में लिखी
कविता के माध्यम से कहते हैं-
1.तुमसे
अब
परेशान
हो गयी
दुनिया
सारी
रे!
राक्षस कोरोना ।
सुन
रहा है न तू ।
2.महाशक्तियाँ
कोरोना
के कारण
चुपचाप
हैं
नि:शब्द
हो गयी हैं
समस्त
जगत की ।
डॉ.एस.एन झा (एसो.प्रोफेसर के. एस. आर. कालेज , सरौरंजन, समस्तीपुर, एल.एम.एन.यू.
दरभंगा, बिहार) लिखते हैं कि- साफ सफाई अपनाइए कोरोना अपने
आप आपसे दूर भगेगा ।
यह, कट्टर,
क्रूर कोरोना,
कुकर्मी संग
रहता है,
निर्मल,निश्छल,निर्भीक,निडर,
के पास
जाने से डरता
है ।
विनोद
कुमार जैन वाग्वर सागवाड़ा से लिखते हैं कि- जो जहाँ है
वहीं कुछ दिन और रुक जाए । कोरोना एक छुआछूत की बीमारी है जो लोगों के सम्पर्क में
आने से हो रही है ।
पाँव पसार रहा कोरोना ठहर जाओ ,
जहाँ
है वही रहे , का बजर बजाओ ,
फिरोजाबाद
की संस्कृत प्रोफेसर डॉ.शैल वर्मा लिखती हैं कि आज
दसों दिशाओं में कोरोना ही कोरोना सुनाई दे रहा है । सभी धैर्य पूर्वक इसका सामना
करना है ।
भूमंडल
पर विपदा छायी,
महामारी
कोरोना आयी।
राजस्थान
के कवि परमानंद भट्ट लिख्ते हैं-
डर जायेगा बाहर मत जा
घबराऐगा बाहर मत जा
दिल्ली की संस्कृत प्रोफेसर डॉ. प्रवेश सक्सेना लिखती
हैं-
दूत
काल- सा आ गया,'कोरोना' का रोग
पूरा
जगत् चपेट में,जनजन को है सोग।।
दिल्ली
के कवि रामकिशन शर्मा लाक डाउन के बारे में सबको समझाते हुए कहते हैं-
इक्कीस
दिन के लॉक-डाउन को सफल यूँ बनाना है
घरों
में रह कर अपने,'कोरोना' को हर हाल हराना है |
इस
प्रकार हम देखते हैं किसी कवि ने इस संकट की घड़ी में दूरी बनाने की सलाह दी है, किसी
ने घर में रहने की सलाह दी है, किसी ने सरकार के निर्देशों
का पालन करने की सलाह दी है । तो किसी-किसी ने मजबूर लोगों के लिए अपनी शोक
संवेदना व्यक्त की है ।
यह पुस्तक अमेजन पर उपलब्ध है ।
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