यश्तिलकचम्पू
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इस चम्पूकाव्य के रचयिता सुप्रसिद्ध जैन कवि श्री सोमदेव या सोमप्रभ सूरि हैं । यह चालुक्यराज अरिकेशन (द्वितीय) के बड़े पुत्र द्वारा संरक्षित कवि थे। राष्ट्रकूट के राजा कृष्णराजदेव के समकालीन होने के कारण, सोमदेव ने इस चम्पूकाव्य की रचना लगभग 959 ईसवी के आसपास की है । जैनों का उत्तरपुराण इसका मूल उत्स है । इसमें अवंती के राजा यशोधर का चरित्र जैन सिद्धांतों को लक्ष्य बनाकर वर्णित है । कथानक अधिकांश काल्पनिक पुनर्जन्म के विश्वास पर आधारित है। प्रथम चार आश्वासों में कथा अविच्छिन्न गति से आगे बढ़ती है। पर अंतिम तीनों आश्वास जैन धर्म के उपासकाध्ययन का वर्णन करते हैं ।इस कृति द्वारा सोमदेव के गहन अध्ययन, प्रगाढ पांडित्य, भाषा पर स्वच्छन्द प्रभुत्व एवं काव्य क्षेत्र में उनकी नए नए प्रयोगों की अभिरुचि का परिचय मिलता है ।सोमदेव ने कई अन्य कवियों के नामोल्लेख सहित, उनकी मुक्तक कृतियों को इस चम्पू काव्य उद्धृत किया है। इस चम्पूकाव्य पर श्रुतसागर सूरि की सुंदर व्याख्या है।
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इस चम्पूकाव्य के रचयिता सुप्रसिद्ध जैन कवि श्री सोमदेव या सोमप्रभ सूरि हैं । यह चालुक्यराज अरिकेशन (द्वितीय) के बड़े पुत्र द्वारा संरक्षित कवि थे। राष्ट्रकूट के राजा कृष्णराजदेव के समकालीन होने के कारण, सोमदेव ने इस चम्पूकाव्य की रचना लगभग 959 ईसवी के आसपास की है । जैनों का उत्तरपुराण इसका मूल उत्स है । इसमें अवंती के राजा यशोधर का चरित्र जैन सिद्धांतों को लक्ष्य बनाकर वर्णित है । कथानक अधिकांश काल्पनिक पुनर्जन्म के विश्वास पर आधारित है। प्रथम चार आश्वासों में कथा अविच्छिन्न गति से आगे बढ़ती है। पर अंतिम तीनों आश्वास जैन धर्म के उपासकाध्ययन का वर्णन करते हैं ।इस कृति द्वारा सोमदेव के गहन अध्ययन, प्रगाढ पांडित्य, भाषा पर स्वच्छन्द प्रभुत्व एवं काव्य क्षेत्र में उनकी नए नए प्रयोगों की अभिरुचि का परिचय मिलता है ।सोमदेव ने कई अन्य कवियों के नामोल्लेख सहित, उनकी मुक्तक कृतियों को इस चम्पू काव्य उद्धृत किया है। इस चम्पूकाव्य पर श्रुतसागर सूरि की सुंदर व्याख्या है।
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