बुधवार, 8 जून 2016

लाई-बताशा बनाम भाईचारा

लाई बताशा बनाम भाईचारा

आज आठ जून है.दस जून तक मेरे गांव के सारे परदेशी आ जाते थे.हमारे गांव में दूसरे शहर में जाकर कमाने वाले को परदेशी बोलते थे.खासकर चाची भाभी बुआ दीदी लोग जिनके पति परदेश जाते थे.या फिर तोहार भइया.तोहार चाचा.तोहार बडका पापा इत्यादि.मेरे गांव में कोई मेरा बड़का पापा नहीं था.ऐसा इसलिये कि पिता गांव में सबसे बड़े थे.बाबा थे गांव के लोग पर बड़का बाबू या बड़के पापा नहीं.मैंने घर फोन किया भतीजों से पूछा कि कोई परदेशी आया.तो बोले पता नहीं .मैंने कहां क्यों .तो मौन रहा.मैंने कहां भाई लाई बताशा नहीं आया .तो बोला मतलब.मैंने पूछा किसी के घर से लाई बताशा नहीं आया.तो वह बोला नहीं.मैंने कहा भाभी से बात कराओ.भाभी ने बताया.भइया गांव काफी बदल गया है.अब यहां भी सियासी चालें चली जाने लगी हैं.मैं मन मार कर रह गया.कितने अच्छे थे वो दिन जब घर में सब कुछ होने के बाद भी हम जून के उस लाईबताशे का इंतजार करते जो प्यार बरसाते हुये एक दूसरे के घर भेजा जाता.और पूछा जाता परदेशी आ गये क्या.लोग शाम को एक दूसरे के यहां मिलने जाते.हम टेप की उन कैसटों का इंतजार करते कि कौन लोग कौन सी नयी कैसेट लाये है.पर सब समय के साथ बदल गया.देख तेरे संसार की हालत क्या हो भगवान कितना बदल गया इंसान...

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