सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय
सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय उत्तरप्रदेश के वाराणसी नगर में स्थित एक संस्कृत विश्वविद्यालय है। यह पूर्वात्य शिक्षा एवं संस्कृत से सम्बन्धित विषयों पर उच्च शिक्षा का केन्द्र है।
यह विश्वविद्यालय मूलतः 'शासकीय संस्कृत महाविद्यालय' था जिसकी स्थापना सन् १७९१ में की गई थी। वर्ष 1894 में सरस्वती भवन ग्रंथालय नामक प्रसिद्ध भवन का निर्माण हुआ जिसमें हजारों पाण्डुलिपियाँ संगृहीत हैं। 22 मार्च 1958 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ सम्पूर्णानन्द के विशेष प्रयत्न से इसे विश्वविद्यालय का स्तर प्रदान किया गया। उस समय इसका नाम 'वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय' था। सन् १९७४ में इसका नाम बदलकर 'सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय' रख दिया गया।
भारत और नेपाल के महाविद्यालय इसके विश्वविद्यालय बनने के पहले से ही इससे सम्बद्ध थे। केवल उत्तर प्रदेश के सम्बद्ध महाविद्यालयों की संख्या 1441 थी। इस प्रकार यह संस्थान न केवल भारत के लिए बल्कि दूसरे देशों के महाविद्यालयों के लिए भी विश्वविद्यालय के समान ही था।
• वेद-वेदांग विभाग
• वेद विभाग
• व्याकरण विभाग
• ज्योतिष विभाग
• धर्मशास्त्र विभाग
• साहित्य संस्कृति विभाग
• साहित्य विभाग
• पुराणेतिहास विभाग
• प्राचीन राजशास्त्रर्थशास्त्र विभाग
• दर्शन विभाग
• वेदान्त विभाग
• सांख्ययोगतंत्रम् विभाग
• तुलनात्मक धर्म एवं दर्शन विभाग
• न्याय विभाग
• मीमांसा विभाग
• श्रमण विद्या विभाग
• पालि एवं थेवद विभाग
• आधुनिक ज्ञान-विज्ञान विभाग
• आधुनिक भाषा एवं भाषाविज्ञान विभाग
• आयुर्वेद विभाग
• कायचिकित्सा तंत्र
• शाल्य तंत्र (सर्जरी)
• शालक्य तंत्र
• कौमारभृत्य तंत्र
• अगद तंत्र (टॉक्सिकोलोजी)
• बाजीकरण तंत्र (Purification of the Genetic organs)
• रसायन तंत्र
• भूत विद्या विभाग (Spiritual Healing) की स्थापना प्रस्तावित है।
सम्बद्ध महाविद्यालय
इस विश्वविद्यालय के साथ १२०० से अधिक संस्कृत विद्यालय एवं महाविद्यालय संबद्ध हैं।
सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय उत्तरप्रदेश के वाराणसी नगर में स्थित एक संस्कृत विश्वविद्यालय है। यह पूर्वात्य शिक्षा एवं संस्कृत से सम्बन्धित विषयों पर उच्च शिक्षा का केन्द्र है।
यह विश्वविद्यालय मूलतः 'शासकीय संस्कृत महाविद्यालय' था जिसकी स्थापना सन् १७९१ में की गई थी। वर्ष 1894 में सरस्वती भवन ग्रंथालय नामक प्रसिद्ध भवन का निर्माण हुआ जिसमें हजारों पाण्डुलिपियाँ संगृहीत हैं। 22 मार्च 1958 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ सम्पूर्णानन्द के विशेष प्रयत्न से इसे विश्वविद्यालय का स्तर प्रदान किया गया। उस समय इसका नाम 'वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय' था। सन् १९७४ में इसका नाम बदलकर 'सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय' रख दिया गया।
भारत और नेपाल के महाविद्यालय इसके विश्वविद्यालय बनने के पहले से ही इससे सम्बद्ध थे। केवल उत्तर प्रदेश के सम्बद्ध महाविद्यालयों की संख्या 1441 थी। इस प्रकार यह संस्थान न केवल भारत के लिए बल्कि दूसरे देशों के महाविद्यालयों के लिए भी विश्वविद्यालय के समान ही था।
• वेद-वेदांग विभाग
• वेद विभाग
• व्याकरण विभाग
• ज्योतिष विभाग
• धर्मशास्त्र विभाग
• साहित्य संस्कृति विभाग
• साहित्य विभाग
• पुराणेतिहास विभाग
• प्राचीन राजशास्त्रर्थशास्त्र विभाग
• दर्शन विभाग
• वेदान्त विभाग
• सांख्ययोगतंत्रम् विभाग
• तुलनात्मक धर्म एवं दर्शन विभाग
• न्याय विभाग
• मीमांसा विभाग
• श्रमण विद्या विभाग
• पालि एवं थेवद विभाग
• आधुनिक ज्ञान-विज्ञान विभाग
• आधुनिक भाषा एवं भाषाविज्ञान विभाग
• आयुर्वेद विभाग
• कायचिकित्सा तंत्र
• शाल्य तंत्र (सर्जरी)
• शालक्य तंत्र
• कौमारभृत्य तंत्र
• अगद तंत्र (टॉक्सिकोलोजी)
• बाजीकरण तंत्र (Purification of the Genetic organs)
• रसायन तंत्र
• भूत विद्या विभाग (Spiritual Healing) की स्थापना प्रस्तावित है।
सम्बद्ध महाविद्यालय
इस विश्वविद्यालय के साथ १२०० से अधिक संस्कृत विद्यालय एवं महाविद्यालय संबद्ध हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें