सोमवार, 30 मई 2016

काव्य लक्षण

काव्य कला का वह सर्वोत्कृष्ट रुप है.जो जीवन को सौन्दर्यात्मक एवं गत्यात्मक बनाता है . यह (काव्य) वह औषधि है जो बड़े-२ रोगों को सहजता से दूर करने में सक्षम है. इस काव्य में इतनी शक्ति है कि मानव तो मानव पशु -पक्षी और देवता भी इसके वश में अर्थात् अधीन हो जाते हैं.
अग्निपुराण के अनुसार-"संक्षेपाद्वाक्यमिष्टार्थव्यवछिन्ना पदावली
काव्यं स्फुरदलंकारं गुणवद् दोषवर्जितम्".

भोज के अनुसार-" अदोषं गुणवद् काव्यमलंकारैरलंकृतम्
रसान्वितं कवि: कुर्वन् कीर्तिं प्रीति च विन्दति".
भामह के अनुसार-" शब्दार्थौ सहितौ काव्य".
कुन्तक के अनुसार-"वक्रोक्ति काव्यजीवितम्"
दण्डी के अनुसार-" शरीरं तावदिष्टार्थव्यवच्छिन्ना पदावली".
वामन के अनुसार-" रीतिरात्मा काव्यस्य
विशिष्टपदरचना रीति.विशेषोगुण आत्मा."
आनन्दवर्धन के अनुसार-" ध्वनिरात्मा काव्यस्य".
पण्डिराज जगन्नाथ के अनुसार-" रमणीयार्थ- प्रतिपादक: काव्यम्".
मम्मट के अनुसार-"तददौषौ शब्दार्थौ सगुणावनलंकृती पुन: क्वापि".
विश्वनाथ के अनुसार-"काव्यं रसात्मकं काव्यं".

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