रविवार, 28 जून 2020

काव्यकमलाञ्जलि : एक समीक्षाणात्मक अध्ययन







डॉ. राका जैन

एटा जनपदस्थ अलीगञ्ज ग्रामवासी इतिहासविद डॉ. कामता प्रसाद की सुपौत्री एवं संस्कृत प्रेमी वीरेन्द्र कुमार जैन के यहाँ 15 जनवरी सन् 1960 ई. में  आपका जन्म पुत्रीरत्न के रुप में हुआ | आपकी प्रारम्भिक शिक्षा ग्रामीण पाठशाला में हुई | आगरा विश्वविद्यालय ने आपने पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की | आपका शोध शीर्षक था-जीवन्धरचम्पू एक समीक्षात्मक अध्ययन”| आप अपने पति प्रो. विजय कुमार जैन के साथ लेखन में संलग्न हैं | आप सन् 1987 ई. से सन् 2003 ई. तक स्वशासी छ्त्रशाल शासकीय महाविद्यालय पन्ना (म.प्र.) में असिस्टेण्ट प्रोफेसर के रुप में कार्य किया | तीन वर्ष तक राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान लखनऊ में अंशकालिक प्रवक्ता के रुप में कार्य किया | संस्कृति मन्त्रालय भारत सरकार से आपको दो वर्ष सीनियर फेलोशिप भी प्राप्त हुई | आपको दिल्ली संस्कृत अकादमी द्वारा को वावर: नरो वा वानरो वापुरस्कार प्राप्त हो चुका है |आप लखनऊ से प्रकाशित श्रुतसंवर्धनीमासिक पत्रिका की सहसम्पादिका भी हैं | आपके शताधिक निबन्ध,कविताएँ ,आलेख, समीक्षाएँ आदि विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं| समय-समय पर आपकी कविताएँ आकाशवाणी से प्रसारित होती रहती हैं | आपने अनेक पालि प्राकृत तथा हिन्दी नाटक का निर्देशन भी किया है |     

रचनायें-

1.       काव्यकमलाञ्जलि, संस्कृत कवितासङ्ग्रह, महावीर प्रकाशन लखनऊ,1990 ई. |इसमें 21 गीत हैं |

डॉ. राका जैन के मधुर भावपूर्ण ललित गीतों की पंक्तियाँ अधोलिखित हैं-

(क)           साधय   मात: ! वीणा     तारम् |

उज्झय   मञ्जुल    मृदुझङ्कारम् ||

विक्षिप्ततारान्        साधय त्वम् |

पूरय     नवनूतनरागं        त्वम् ||

कुरु मां  स्ववीणाया: प्रियस्त्वम् ||

 

(ख)          वादयत्वं शमवीणातारम् |

उज्झय मञ्जुलमृदुझङ्कारं  |

दुराशाया: मनसि सञ्चार: |

निराशाया:   नूतन-श्रृङ्गार |

पिपासाया:  विप्लवसार:

ननु हे वेदि ! प्राप्स्यसि अवतारम् |

वादय .....................................||

 

(ग)             रे जय भारत ! पुन: पुन: तुभ्यं प्रणाम: |

त्वदीयं मस्तकं हिमगिरेरिव उन्नतम्,

सागर: तव चरणानां करोति चुम्बनम्,

भवति शरीरे वेद-ऋचानां हि श्वसनम्,

अस्ति ननु वाण्यां गीताया: स्वरगुञ्जनम् |

देव ! संस्कृतेरादितपस्वी, अभिराम: |

रे जय भारत ! पुन: पुन: तुभ्यं प्रणाम: ||

(घ)     कोटियुता चित्त चञ्चलता  |

चञ्चलता न गता न गता ||

हितवाणी मया न श्रुता |

अज्ञानाधीनता भूता |

चञ्चलता आगता आगता ||

कोटि ..............................||

(ङ) क: उद्दीपकरसानां छन्दोविधान: त्वम् |

केषामपनानां कोऽसि, शरद् विहङ्ग: त्वम् ||

प्रतिक्षणं प्रिय: प्राण: त्वम् ||

ननु स्वप्नस्य व्योम्न: अव तीर्य त्वम्

कीदृशमागतोऽसि, स्वच्छन्द-भूतले त्वम् |

न जाने, कस्मिन् मानसे निरन्तरं त्वम् |

प्रदानं करोषि, त्वं विशिष्ट ज्ञानम् ||

क:...........................................||

(च)     कियन्मधुरं प्रियस्य पत्रम्

प्रियस्य प्रियं काल्पनिक पत्रम्

प्रिय ! शब्दे शब्दे तव रूपम्,

अभूत अर्थो सम्वाद: नूनम् ,

सम्बोधनस्याक्षरं –अक्षरं ,

चेतस: मृदुप्रसादो जातम् |

कियत् ........................||

पंक्त्यां भूतो मृदुसञ्चार: |

पदं पदं झञ्कृत: झंकार: |

तव मोहकपत्रस्य विचार: |

मनस: हारं भूतं नूनम्  |

कियत् .....................||

अन्तिमशब्दद्वयं  मधुसिक्तम् |

वपुषि झटिति  सञ्चरति हि रक्तम् |

मन: भूतमुन्माद-पूरितम् |

अनुभवामीदं  नेह पवित्रम् |

कियत् ........................||

रोम्णि- रोम्णि प्रीति: त्वदीया |

जाता रुपानुरागि –प्रिया

चन्दनतुल्यं स्मृति: त्वदीया

श्वासे-श्वासे काव्यं रचितम्  ||

कियत् .. ........................||

(छ)अहमास्मि !

अथ किम् ?

ग्रहा: विलसन्ति नभसि

परम

ध्यायति पातालपर्यन्तम्

ज्ञायते

अनन्तं विपुलम्

विमलं सागरम्

समाप्नोति

यत्नेन

अहंकारस्य (मे) लघु: कलश:

अन्तरिक्षस्य प्रांशुवत्म्

माति प्रकाशवर्ष:

परम्

मनो-नभ:

कोऽपि  स्पृशति न

किं कारणम्

अहम् अहम् |

अर्थात्

अस्ति

किम् ?

अमकारस्य बाहुल्यम् |

 

(ज)शिशुवन्निश्छलं निजजीवनम् |

भवेत् सहजं वै प्रतिक्षणम् ||

दुर्बलं प्रति सवलेन पीडनम्,

परेषामेव हि प्राण- हननम् ,

चित्ते आगत कुविचारघनम्,

निवारय त्वं, अस्ति महापतनम् |

शिशु .................................||

(झ)    किं नाम व्रतम् ?

पापेभ्य: विरति:

व्रतं इति निगद्यते |

व्रतस्य भवन्ति

त्रिस्रावस्था:

प्रथमा तु

श्रद्धाया: जागरणम् |

 

(ञ)     जीवनम्

एक टङ्कणयन्त्रम्

कर्मण: कीबोर्ड:

सुखदुःखयो:

रचयतीतिहासम्

गति: तस्य

बोधयति –

जीवनमेकं प्रपञ्चम्

भोजयति यं निश्चलेन

मैकेनिक –सर्जनो (सुधारक:)

कार्मिकरोगस्य

करोति निनादम्

उपचारात्पूर्वम्

जीवन-दर्शनस्य

नूतनपेक्ष्यते

किम् ?

अधिज्ञानम्   |

सम्मान/पुरस्कार -

1.      संस्कृत-सूक्ति-समुच्चय (जैनदर्शन खण्ड), पर उ. प्र. संस्कृत अकादमी द्वारा विविध पुरस्कार, 2003 ई. |

2.       जीवन्धरचम्पू सौरभ (शोधप्रबन्ध), पर गुरुगोपालदास बरैया सम्मान, (अखिल भारतीय दिगम्बर जैन विद्वत परिषद् द्वारा) 2003 ई. |

3.       विग्रहव्यावर्तनी पर उ.प्र. संस्कृत अकादमी द्वारा विविध पुरस्कार, 2009 ई. |

4.       शिक्षासमुच्चयकारिका पर उ.प्र. संस्कृत अकादमी द्वारा विविध पुरस्कार, 2012 ई. |

5.       प्राकृत-सूक्तिकोश पर उ.प्र. संस्कृत अकादमी द्वारा विशेष पुरस्कार, 2013 ई. |

                                                  

                                        





कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें