सामाजिक और
राजानीतिक विद्रूपताओं पर तंज कसती कविताएँ : वन्दे
भारतम्
समकालीन
संस्कृत साहित्य में डॉ.निरंजन मिश्र का नाम बड़े ही अर्हणा (आदर)के साथ लिया जाता
है । मिश्र की गणना एक विद्रोही कवि के रुप में की जाती है क्योंकि वे अपनी बात
बिना किसी लाग-लपेट के कहते हैं । उनको कभी यह नहीं भय नहीं होता कि उनके बारे में
कौन क्या सोचेगा । वे अपनी कविता में जनता की आवाज को सर्वोच्च स्थान प्रदान करते हैं
। यही कारण है कि वे पाठकों के मध्य बहुत पसंद किये जाते हैं ।
प्रगतिशील
प्रकाशन दिल्ली से 2015 ई. में प्रकाशित इनका काव्य इसी प्रकार का एक काव्य संग्रह
है । जिसमें 101 पद्य हैं । इसका हिन्दी अर्थ भी स्वयं डॉ.मिश्र ने लिखा है ।
विश्व
विख्यात दिल्ली के दामिनी काण्ड पर कवि ने लिखा है कि किस प्रकार से लोग आज कामान्ध
हो गए हैं । और भले बुरे को पहचाना त्याग दिये हैं । कामवासना के सामने कानून का
भी भय नहीं है ।
कामान्धै:
परिमर्दिताऽपि तरुणी कीर्ति गता दामिनी
दुष्टैर्यत्र
बलाहकै: प्रतिदिनञ्चाच्छाद्यते चन्द्रिका ।
प्रायश्चित्तबलेन राजभवने मोदं
तनोतीश्वरो
वन्दे
राज्यबुभुक्षितैर्विदलितं भोगप्रियं भारतम् ॥ श्लोक संख्या 8
सर्वत्र
भ्रमतीव यत्र कुमतिर्वैदेशिकानां बलात्
गेहोच्छेदनमेव
नीतिकुशलानां कौशलं कीर्त्यते ।
लज्जा
नृत्यति यत्र रङ्गभवने रोदित्यलं संस्कृति-
र्वन्दे
मन्मथपण्डितस्य भवनं स्वात्मप्रियं भारतम् ॥ श्लोक संख्या 13
बढ़ते हुए देह व्यापार पर तंज करता हुआ कवि कहता है की जिस भारत की
स्त्रियां अपने जौहर व्रत के लिए प्रसिद्ध है थी (विश्व विख्यात थी) उसी भारत के
स्त्रियां आज वेश्यालयों में देह व्यापार कर रही है ।
ऐसे भारत को मैं प्रणाम करता हूँ ।
दुर्दान्तैर्दलिता दरिद्रतनया मूर्तिस्वरूपा गृहे
मथ्नाति
प्रिययौवनं निजगृहे प्रीत्याद्य काचित् क्वचित् ।
यत्रैश्वर्यवतां प्रसादनविधावाहूयते संस्कृति-
र्वन्दे तत्
श्रुतिपूतकर्णविवरं
चित्रात्मकं भारतम् ॥ श्लोक
संख्या 16
पत्रकारिता के नाम पर चाटुकारिता करने वालों को भी कवि ने नहीं छोड़ा
है ।
भूपो यत्र
मन्त्रसाधनपरो नो वाऽरिसम्मर्दको
गोप्यागोप्यविवेचने
न चतुरा यत्रोचिता मन्त्रिण: ।
नित्यं मन्त्रविभेदने च
निरता वार्ताहरा नारदा
वन्दे तं
निजताविनाशनपरं दिव्यच्छटं भारतम् ।। श्लोक
संख्या 18
डॉ.निरंजन
मिश्र का यह पद्य रामचरितमानस
से काफी मेल खाता है जिसमें तुलसीदास जी कहते हैं –
झूठइ लेना झूठइ देना झूठइ भोजन झूठ चबेना
बोलहिं मधुर बचन जिमि मोरा खाइ महा अहि हृदय
कठोरा
उत्कोचार्चनकौशलेन
विजिता यत्राधिकारेच्छव-
स्तस्यार्थेन
हि यत्र नीतिवधका दोषान्विमुक्तास्सदा ।
उत्कोचाङ्गनमित्य भेदरहिता
दासास्तथा चेश्वरा
वन्दे तत्
किल वर्णभेदरहितं द्रव्यप्रियं भारतम् ।। श्लोक संख्या 19
विद्या के स्थान पर धन को सर्वोपरि मानने वाले
समाज पर तंग कसते हुए डॉ.निरंजन मिश्र कौन
कहते हैं-
विद्या यत्र
नियुक्तये सुविदिता विद्यार्थिनो ग्राहका
द्रव्योपार्जनतत्पराश्च
गुरव: स्वस्वप्रतिष्ठार्थिन: ।
मूर्खानां
पदचुम्बने कुशलता यत्रास्ति विद्यावतां
वन्दे
कल्पलताविखण्डनकलालोकप्रियं भारतम् ॥ श्लोक संख्या 21
व्याभिचार के भय से जिस भारत की स्त्रियों ने घर से बाहर निकलना बंद कर दिया ऐसे भारत को मैं प्रणाम करता हूँ ।
मार्गे
लुण्ठकभीतिरस्ति नियता शोभार्थमारक्षिण:
कामान्धस्य
भयान्न याति तरुणी गेहाद् बहि: सम्प्रति ।
मृष्टा लोकविनिन्दनेन निहता
यत्राधुना दृश्यते
वन्दे तन्मुखपिण्डदाननिरतं लोकेश्वरं भारतम् ॥ श्लोक संख्या 40
लोक मर्यादा को भंग करने वाली स्त्रियों के विषय में
कवि का कथन है ।
दीनानाथसुता स्वजीर्णवसनै: रक्षत्यहो यौवनं
लक्ष्मीनाथसुता
किरत्यविरतं लोकेषु तद् यौवनम् ।
लज्जारक्षणतत्परा
विदलिता वन्द्या च
यत्रापरा
वन्दे तद्
धनदुर्मदस्य चरितैराच्छादितं भारतम् ॥ श्लोक संख्या 42
डॉ.निरंजन
मिश्र कहते है कि जहाँ लोग गुणों की अपेक्षा धन को
महत्त्व प्रदान करते हैं । ऐसे लोग धन्य हैं ।
क्रीतैर्यत्र
जनैस्सभामधुरता नेतुर्जयोद्घोषणै:
पातुं
भाषणमेव यान्ति जनता द्रव्यार्जनायोत्सुका: ।
प्रीतिर्यत्र
धनार्जने न कथने
सर्वे स्वलाभार्थिनो
दोषोरोपणपण्डितप्रगुणितुं वन्दे
सदा भारतम् ॥ श्लोक संख्या 95
इस
प्रकार हम देखने हैं कि –कवि ने नेता, राजा, व्याभिचार
में संलिप्त नारी-पुरुष किसी को भी नहीं छोड़ा है जो भारतीय संस्कृति और सभ्यता के
साथ खिलवाड़ कर रहे हैं । डॉ.निरंजन मिश्र की लेखनी इसी प्रकार अबाध गति से चलती
रहे है और वह माँ वीणापाणि की सेवा में इसी प्रकार संलग्न रहें तथा जनमानस को अपनी
कलम से जाग्रत करते हैं ।
समीक्षक- डॉ.अरुण
कुमार निषाद
पुस्तक- वन्दे
भारतम् (संस्कृत काव्यसंग्रह)
लेखक- डॉ.निरंजन
मिश्र
प्रकाशन- प्रगतिशील
प्रकाशन दिल्ली ।
मूल्य-100 रुपया
पृष्ठ संख्या-38