विश्वास ही वह शक्ति है जिसके सहारे हम बड़ा-से-बड़ा कार्य कर सकते हैं.जहां विश्वास नहीं वहां झगड़ा लड़ाई कलह उत्पन्न हो जाता हैं.विश्वास एक मेरुदण्ड है जिसके सहारे समाज और परिवार चल रहा है.प्राचीनकाल में गुरु शिष्य पर विश्वास करके ही उसे विद्या दान करते थे.माता पिता को एक विश्वास ही होता था कि मेरी संतान बुढ़ापे में मेरा सहारा होगी.परीक्षार्थी यह विश्वास लेकर ही परीक्षा देने जाता है कि उसको परीक्षा में सफल होना है और इसी विश्वास के बलबूते वह अपनी सफलता को प्राप्त भी कर देता है.परन्तु भौतिकता भरे इस युग में लोगों का एक दूसरे से विश्वास खत्म होता जा रहा .कौन अपना है कौन पराया.कौन मित्र है कौन शत्रु इसकी पहचान करना कठिन हो गया है.आज माता पिता अपने बच्चे पर बच्चे अपने माता पिता पर विश्वास नहीं कर पा रहे हैं.यही कारण है कि बच्चे आज चिड़चिड़े हो रहे हैं.पति अपनी पत्नी पर विश्वास नहीं कर पा रहा है.पत्नी अपने पति पर कि उसका पति उसके प्रति कितना वफादार है.प्रेम के स्थान पर वासना का बोलबाला हो गया है.अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिये आदमी तुच्छ -से-तुच्छ कार्य करने में भी नहीं शरमा रहा है.
इस ब्लॉग पर संस्कृत, आधुनिक संस्कृत, समकालीन संस्कृत एवं 21वीं शताब्दी की नवीन संस्कृत की पुस्तकों की जानकारी तथा संस्कृत के विद्यार्थियों (शोधार्थियों),अध्येताओं के लिए आवश्यक अन्य जानकारियाँ भी पोस्ट की जाती हैं |
शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015
विश्वास
विश्वास ही वह शक्ति है जिसके सहारे हम बड़ा-से-बड़ा कार्य कर सकते हैं.जहां विश्वास नहीं वहां झगड़ा लड़ाई कलह उत्पन्न हो जाता हैं.विश्वास एक मेरुदण्ड है जिसके सहारे समाज और परिवार चल रहा है.प्राचीनकाल में गुरु शिष्य पर विश्वास करके ही उसे विद्या दान करते थे.माता पिता को एक विश्वास ही होता था कि मेरी संतान बुढ़ापे में मेरा सहारा होगी.परीक्षार्थी यह विश्वास लेकर ही परीक्षा देने जाता है कि उसको परीक्षा में सफल होना है और इसी विश्वास के बलबूते वह अपनी सफलता को प्राप्त भी कर देता है.परन्तु भौतिकता भरे इस युग में लोगों का एक दूसरे से विश्वास खत्म होता जा रहा .कौन अपना है कौन पराया.कौन मित्र है कौन शत्रु इसकी पहचान करना कठिन हो गया है.आज माता पिता अपने बच्चे पर बच्चे अपने माता पिता पर विश्वास नहीं कर पा रहे हैं.यही कारण है कि बच्चे आज चिड़चिड़े हो रहे हैं.पति अपनी पत्नी पर विश्वास नहीं कर पा रहा है.पत्नी अपने पति पर कि उसका पति उसके प्रति कितना वफादार है.प्रेम के स्थान पर वासना का बोलबाला हो गया है.अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिये आदमी तुच्छ -से-तुच्छ कार्य करने में भी नहीं शरमा रहा है.
शनिवार, 21 नवंबर 2015
प्रो. रामसुमेर यादव
प्रो. रामसुमेर यादव का जन्म उ.प्र. के फतेहपुर जनपद के बरौहां ग्राम में 13 दिसंबर 1958 में हुआ। आपके पिता का नाम श्री सूरजदीन यादव तथा माता का नाम श्रीमती कैलासा देवी है। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के विद्यालय में ही सम्पन्न हुई। आप सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी से स्नातक तथा परास्नातक की डिग्री प्राप्त किया। आपने श्री गंगानाथ झा केन्द्रीय संस्कृत विद्यापीठ, इलाहबाद से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। अध्ययन के उपरान्त केन्द्रीय विद्यालय, चंडीगढ़ संभाग से चयनित होकर केन्द्रीय विद्यालय भटिण्डा (पंजाब ) में अक्टूबर 1988 से 7 जनवरी 1998 तक संस्कृत शिक्षक के पद पर निष्ठा के साथ कार्य किया। वहीं आपको श्रेष्ठ शिक्षक का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। लोकसेवा आयोग उ.प्र.इलाहाबाद से चयनित होकर गवर्नमेंट पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज उत्तरकाशी (उत्तराखण्ड ) में प्रवक्ता तथा वरिष्ठ प्रवक्ता पद पर 8 जनवरी 1998 से 18 अक्टूबर 2006 तक कार्य किया।
हेमवती नन्दन बहुगुणा विश्वविद्यालय, श्रीनगर से दर्शन ग्रुप में संस्कृत से प्रथम श्रेणी में एम. ए. किया और साथ ही डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय , फैजाबाद से हिन्दी में प्रथम श्रेणी में एम. ए. किया। आप 19 अक्टूबर 2006 से चयनित होकर लखनऊ विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में प्रोफेसर पद पर सेवारत रहते हुए संस्कृत साधना में संलग्न हैं।
प्रो. यादव को हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा साहित्यमहोपाध्याय की मानद उपाधि से 2009 में सम्मानित किया गया है।
इनकी रचनाओं में वज्रमणिः(उपन्यास ), इन्दिरासौरभम् (काव्य ), कबीरवचनामृतम् (अनूदित काव्य), अस्पृश्यता (नाटक ) आदि पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सम्प्रति सुभाषित रत्नभण्डारगार का अनुवाद कार्य चल रहा है। लगभग 90 शोधपत्र विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। आप राष्ट्रिय अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में 80 शोधपत्रों का वाचन कर चुके हैं।
आकाशवाणी और दूरदर्शन से निरन्तर आपके कार्यक्रम प्रसारित होते रहते हैं।
बुधवार, 14 अक्टूबर 2015
श्रीहर्ष
श्रीहर्ष 12वीं सदी के संस्कृत के प्रसिद्ध कवि। वे बनारस एवं कन्नौज के गहड़वाल शासकों - विजयचन्द्र एवं जयचन्द्र की राजसभा को सुशोभित करते थे। उन्होंने कई ग्रन्थों की रचना की, जिनमें ‘नैषधीयचरित्’ महाकाव्य उनकी कीर्ति का स्थायी स्मारक है। नैषधचरित में निषध देश के शासक नल तथा विदर्भ के शासक भीम की कन्या दमयन्ती के प्रणय सम्बन्धों तथा अन्ततोगत्वा उनके विवाह की कथा का काव्यात्मक वर्णन मिलता है।
परिचय
श्रीहर्ष में उच्चकोटि की काव्यात्मक प्रतिभा थी तथा वे अलंकृत शैली के सर्वश्रेष्ठ कवि थे। वे शृंगार के कला पक्ष के कवि थे। श्रीहर्ष महान कवि होने के साथ-साथ बड़े दार्शनिक भी थे। ‘खण्डन-खण्ड-खाद्य’ नामक ग्रन्थ में उन्होंने अद्वैत मत का प्रतिपादन किया। इसमें न्याय के सिद्धान्तों का भी खण्डन किया गया है।
श्रीहर्ष, भारवि की परम्परा के कवि थे। उन्होंने अपनी रचना विद्वज्जनों के लिए की, न कि सामान्य मनुष्यों के लिए। इस बात की उन्हें तनिक भी चिन्ता नहीं थी कि सामान्य जन उनकी रचना का अनादर करेंगे। वह स्वयं स्वीकार करते हैं कि उन्होंने अपने काव्य में कई स्थानों पर गूढ़ तत्त्वों का समावेश कर दिया था, जिसे केवल पण्डितजन ही समझ सकते हैं। अत: पण्डितों की दृष्टि में तो उनका काव्य माघ तथा भारवि से भी बढ़कर है। किन्तु आधुनिक विद्वान इसे कृत्रिमता का भण्डार कहते हैं।
महाकवि श्रीहर्ष की माता का नाम मामल्ल देवली और पिता का 'हीरपंडित' था। गहड़वालवंशी काशी के राजा विजयचंद्र और उनके पुत्र राजा जयचंद्र (जयतचंद्र) - दोनों के वे राजसभापंडित थे। राजा कान्यकुब्जेश्वर कहे जाते थे, यद्यपि उनकी राजधानी बाद में चलकर काशी में हो गई थी। कान्यकुब्जराज द्वारा समादृत होने के कारण उन्हें राजसभा में दो बीड़े पान तथा आसन का सम्मान प्राप्त था। इन राजाओं का शासनकाल 1156 ई. से 1193 ई. तक माना गया है। अत: श्रीहर्ष भी बारहवीं शती के उत्तरार्ध में विद्यमान थे। किंवदंती के अनुसार 'चिंतामणि' मंत्र की साधना द्वारा त्रिपुरा देवी के प्रसन्न होने से उन्हें वरदान मिला तथा वाणी, काव्यनिर्माणशक्ति एवं पांडित्य की अद्भुत क्षमता उन्हें प्राप्त हुई। यह भी कहा जाता है कि काव्यप्रकाशकार 'मम्मट' उनके मामा थे जिन्होंने 'नैषध महाकाव्य' में आ गए कुछ दोषों से श्रीहर्ष को परिचित कराया। श्रीहर्ष केवल काव्यनिर्माण की विलक्षण प्रतिभा से ही संपन्न न थे अपितु वे उच्च कोटि के दर्शन-शास्त्र मर्मज्ञ भी थे। सुकुमार वस्तुमय साहित्यनिर्माण में उनकी वाणी का जैसा अबाधित विलास प्रगट होता है वैसी ही शक्ति प्रौढ़ तर्कों से पुष्ट, शास्त्रीय ग्रंथ के निर्माण में भी उन्हें प्राप्त थी। पंडित मंडली में प्रसिद्ध जनश्रुति के अनुसार तार्किकशिरोमणि उदयनाचार्य को भी उन्होंने शास्त्रार्थ में पराजित किया था। नैयायिकों की तर्कमूलक पद्धति से न्याय के सिद्धांतों का खंडन करनेवाला श्रीहर्ष का 'खंडनखंडखाद्य' नामक ग्रंथ अद्वैत वेदांत की अति प्रकृष्ठ और प्रौढ़ रचना मानी जाती है। इसके अतिरिक्त 'स्थैर्यविचारप्रकरण' और 'शिवशक्तिसिद्धि' (या 'शिवशक्तिसिद्धि') नामक दो दार्शनिक ग्रंथों का श्रीहर्ष ने निर्माण किया था। 'विजय प्रशस्ति', 'गौडोवींशकुलप्रशस्ति' तथा 'छिंदप्रशस्ति' नामक तीन प्रशस्तिकाव्यों के तथा 'अर्णव वर्णन' और 'नवसाहसांकचरित' चंपू काव्यों के भी वे प्रणेता थे।
नैषधीयचरित्
श्रीहर्ष का 'नैषधीयचरित्' 'बृहत्त्रयी' में बृहत्तम महाकाव्य है। परम प्रौढ़ शास्त्रीय वैदुष्य से ओतप्रोत, कविप्रोढ़ोक्तिसिद्ध कल्पना से वैदग्ध्यपूर्ण और अलंकृत काव्यशैली के उत्कृष्टतम महाकाव्य के रूप में 'नैषधीय चरित्' का संस्कृत महाकाव्यों में अद्वितीय स्थान है। 'भारवि' के किरातार्जुनीयम् से आरंभ अलंकरणप्रधान सायास काव्यरचना शैली का चरमोत्कर्ष नैषधीयचरित् (नैषधचरित् या नैषध काव्य) में विकसित है। महाभारत के नलोपाख्यान से ली गयी इस महाकाव्य की कथावस्तु में नल और दमयंती के पूर्वराग, विरह, स्वयंवर, विवाह और नवदंपतिमिलन एवं संगमकेलियों का वर्णन हुआ है। प्रसंगत: अन्य मध्यागत विषय भी काव्यप्रबंध में गुंफित हैं। 22 सर्गोंवाले इस विशालकाय काव्य के अनेक सर्गों की श्लोकसंख्या 150 से भी अधिक है। परंतु इसका वर्ण्य कथानक काव्याकार के अनुपात में छोटा है। कथाविस्तार में सीमालघुता रहने पर अवांतर प्रसंगों में वर्णनविस्तृति के कारण ही इसका काव्यकलेवर बड़ा है। चार सर्गों में नल का श्रोत्रानुराग, पूर्वरागजन्य विरह, हंसमिलन का दौत्य, दमयंतीविरह आदि मात्र वर्णित है। इंद्र, अग्नि, वरुण, यम इन चार देवां में से किसी को पतिरूप में वरण करने के लिए नल का दूत बनकर दमयंती के यहाँ जाना, उसे समझाना बुझाना और दूतकार्य में असफल होना - इतनी ही कथा का वर्णन 5 से 9 सर्ग तक दसवें सर्ग से सोलहवें सर्ग तक, सांगोपांग, दमयंती स्वयंवर, नलवरण और विवाहादि का विवरण दिया गया है। सत्रहवाँ सर्ग कलि और देवों के बीच संवाद है जिसमें नास्तिकवाद और उसका खंडन है। अठारहवें सर्ग में नवविवाहित दंपति का प्रथम समागम वर्णित है। शेष चार सर्गों में-राजा रानी की दिनचर्या, विलास विहार आदि के सरस विवरण प्रस्तुत किए गए हैं। इतनी स्वल्प कथावस्तु मात्र को लेकर इस खंडकाव्यदेशीय महाकाव्य की रचना हुई है।
इस काव्य का मुख्य वर्ण्यप्रवाह शृंगार रस है। विविध उपधाराओं और अवांतर तरंगभगों के साथ वही रसधारा आद्यंत प्रवहमान है, चाहे स्थान स्थान पर उसकी गति कितनी ही मंद क्यों न हो। दंडी आदि काव्यशास्त्रियों के महाकाव्य-लक्षणानुसार ही प्राय: अधिकांश वर्ण्यविषय गुंफित हैं। तेरहवें सर्ग में श्लिष्ट काव्य उत्कर्ष के चरमबिंदु पर पहुँचा है जहाँ प्राय: सर्ग भर में श्लिष्टार्थपरक पद्यों द्वारा एक साथ ही इंद्र, अग्नि, वरुण, ययम और नल का प्रशस्तिगान किया गया है। अलंकृत और चमत्कारचित्रित काव्यरचना शैली से बोझिल होने पर भी 'नैषध' में अद्भुत काव्यात्मक प्रौढ़ता और आकर्षण है। भंगिमावैविध्य के साथ वर्णन की अनेकचित्रता, कल्पना की चित्रविचित्र उड़ान, प्रकृतिजगत् का सजीव रूपचित्रण, भावों का समुचित निवेश, ललनारूप का अलंकृतरूढ़ पर प्रोढ़िरमणीय सौंदर्यवर्णन, अर्थगुंफन में नव्य अपूर्वता, संस्कृत भाषा के शब्दकोश पर असाधारण अधिकार, शास्त्रीय पक्षों की मार्मिक और प्रौढ़ संयोजना, अलंकारमूलक चमत्कारसर्जन की विलक्षण प्रतिभा, वैलासिक और उच्चवर्गीय कामकेलि एवं सुखविहार का मोहक चित्रण आदि में अपूर्व सामर्थ्य के कारण श्रीहर्ष कवि को संस्कृत-पंडितमंडली में जो प्रतिष्ठा मिली है वह अन्य को अप्राप्त है। पाँच अर्थोंवाले (पंचनली) (13वाँ सर्ग) से उनके नानार्थ शब्दप्रयोग की अद्भुत क्षमता सिद्ध है। प्रस्तुत अप्रस्तुत रूप में दार्शनिक और शास्त्रीय ज्ञान की प्रौढ़ता का प्रकाश सर्वत्र काव्य में बिखरा हुआ है। वे अद्वैत वेदांत ही नहीं तंत्र, योग, न्याय, मीमांसा आदि के भी प्रौढ़ मर्मज्ञ थे। पर दर्शन के ज्ञानकाठिन्य ने उनके कविहृदय की भावुकता के प्रवाहन में समय समय पर सहायता भी दी है। इन सबके साथ दृश्यजगत् की स्वाभाविक सहज छवियों में भी उनका मन रमा रहा। प्रथम सर्ग में नल के सामने प्रकट हंस के जिन नैसर्गिक और पक्षिसंबद्ध रूपों, चेष्टाओं और व्यापारों का अंकन हुआ है - उनकी स्वभावोक्ति में प्रकृति के प्रति दृढ़ासक्ति लक्षित है। इन्हीं सब वैशिष्टों के कारण श्रीहर्ष को विलक्षण प्रतिभाशाली, शास्त्रमर्मज्ञ, अप्रस्तुत विधान में परम समर्थ और अलंकरण काव्यरचना में अतिनिपुण महाकवि कहा गया है। वाल्मीकि, कालिदास आदि के समान भावलोक के सहजांकन में विशेष अनुराग के न रहने पर भी अपने पांडित्य और कलापक्ष की निपुणता के कारण कवि के रूप में उनका अपना विशिष्ट महत्व और स्थान है। इसी कारण बृहत्त्रयी के कवियों में उन्हें उच्च प्रतिष्ठा मिली है।
भारवि
भारवि (छठी शताब्दी) संस्कृत के महान कवि हैं। वे अर्थ की गौरवता के लिये प्रसिद्ध हैं ("भारवेरर्थगौरवं")। किरातार्जुनीयम् महाकाव्य उनकी महान रचना है। इसे एक उत्कृष्ट श्रेणी की काव्यरचना माना जाता है। इनका काल छठी-सातवीं शताब्दि बताया जाता है। यह काव्य किरातरूपधारी शिव एवं पांडुपुत्र अर्जुन के बीच के धनुर्युद्ध तथा वाद-वार्तालाप पर केंद्रित है। महाभारत के एक पर्व पर आधारित इस महाकाव्य में अट्ठारह सर्ग हैं। भारवि सम्भवतः दक्षिण भारत के कहीं जन्मे थे। उनका रचनाकाल पश्चिमी गंग राजवंश के राजा दुर्विनीत तथा पल्लव राजवंश के राजा सिंहविष्णु के शासनकाल के समय का है।
कवि ने बड़े से बड़े अर्थ को थोड़े से शब्दों में प्रकट कर अपनी काव्य-कुशलता का परिचय दिया है। कोमल भावों का प्रदर्शन भी कुशलतापूर्वक किया गया है। इसकी भाषा उदात्त एवं हृदय भावों को प्रकट करने वाली है। प्रकृति के दृश्यों का वर्णन भी अत्यन्त मनोहारी है। भारवि ने केवल एक अक्षर ‘न’ वाला श्लोक लिखकर अपनी काव्य चातुरी का परिचय दिया है।
आचार्य बलदेव उपाध्याय
आचार्य बलदेव उपाध्याय (१० अक्टूबर १८९९ - १० अगस्त १९९९) हिन्दी और संस्कृत के सुप्रसिद्ध विद्वान, साहित्येतिहासकार, निबन्धकार तथा समालोचक थे। उन्होने अनेकों ग्रन्थों की रचना की, निबन्धों का संग्रह प्रकाशित किया तथा संस्कृत वाङ्गमय का इतिहास लिखा। वे संस्कृत साहित्यकी हिन्दी में चर्चा के लिए जाने जाते हैं। उनके पूर्व संस्कृत साहित्य से सम्बन्धित अधिकांश पुस्तकें संस्कृत में हैं या अंग्रेजी में।
आचार्य बलदेव उपाध्याय को भारत सरकार द्वारा सन १९८४ में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
जीवन परिचय
आचार्य जी का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के सोनबरसा गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
कृतियाँ
क्रमांक | ग्रन्थ का नाम | प्रकाशक | वर्ष |
---|---|---|---|
1. | रसिक गोविन्द और उनकी कविता | हिन्दी नागरी प्रचारिणी सभा बलिया | 1926 |
2. | सूक्ति मुक्तावली | हरिदास कम्पनी, मथुरा | 1932 |
3. | संस्कृत कवि चर्चा | मास्टर खेदीलाल, वाराणसी | 1932 |
4. | भारतीय दर्शन | शारदा मंदिर, वाराणसी | 1942 |
5. | संस्कृत साहित्य का इतिहास | शारदा मंदिर वाराणसी | 1944 |
6. | धर्म और दर्शन | शारदा मंदिर, वाराणसी | 1945 |
7. | संस्कृत वाङ्गमय | शारदा मंदिर, वाराणसी | 1945 |
8. | वैदिक कहानियाँ | शारदा मंदिर, वाराणसी | 1946 |
9. | बौद्ध दर्शन मीमांसा | शारदा मंदिर, वाराणसी | 1946 |
10. | आर्य संस्कृति के मूलाधार | शारदा मंदिर, वाराणसी | 1947 |
11. | भारतीय साहित्य शास्त्र | प्रसाद परिषद, वाराणसी | 1948 |
12. | भागवद् सम्प्रदाय | नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी | 1954 |
13. | वैदिक साहित्य और संस्कृति | शारदा संस्थान, वाराणसी | 1955 |
14. | संस्कृत आलोचना | उ प्र संस्कृत सम्स्थान, लखनऊ | 1956 |
15. | काव्यानुशीलन | रमेश बुक डिपॉट, जयपुर | 1956 |
16. | भारतीय वाङ्गमय में श्री राधा | बिहार राजभाषा परिषद, पटना | 1963 |
17. | संस्कृत सुकवि समीक्षा | चौखम्भा विद्या भवन, वाराणसी | 1963 |
18. | पुराण विमर्श | चौखम्भा विद्या भवन, वाराणसी | 1965 |
19. | संस्कृत शास्त्रों का इतिहास | चौखम्भा विद्या भवन, वाराणसी | 1969 |
20. | भारतीय धर्म और दार्शन | चौखम्भा विद्या भवन, वाराणसी | 1977 |
21. | संस्कृत साहित्य का संक्षिप्त इतिहास | शारदा सम्स्थान, वाराणसी | 1978 |
22. | काशी की पाण्डित्य परम्परा | शारदा संस्थान, वाराणसी | 1985 |
23. | भारतीय धर्म और दर्शन का अनुशीलन | शारदा संस्थान, वाराणसी | 1985 |
24. | विमर्शचिन्तामणिः | शारदा संस्थान, वाराणसी | 1987 |
प्रो. रमाकान्त शुक्ल
जीवनी
डॉ प्रो. रमाकान्त शुक्ल उत्तर प्रदेश के भारतीय राज्य में खुर्जा शहर में, 1940 के क्रिसमस की पूर्व संध्या पर पैदा हुआ था। उनका प्रारंभिक अध्ययन के पारंपरिक तरीके में थे कि वह अपने parents- Sahityacharya पीटी से संस्कृत सीखा। ब्रह्मानंद शुक्ला और श्रीमती। प्रियंवदा शुक्ला और साहित्य आचार्य और सांख्य योग आचार्य डिग्री पारित कर दिया। बाद में, वह शामिल हो गए आगरा विश्वविद्यालय और में एमए पारित कर हिन्दी में एक स्वर्ण पदक और बाद में पारित कर दिया एमए के साथ संस्कृत Sampurnananda संस्कृत विश्वविद्यालय से। वह भी अपनी पीएचडी की विषय था 'साल 1967 में एक पीएचडी सुरक्षित Jainacharya Ravishena- केरिता Padmapurana (संस्कृत) एवं Tulasidas केरिता Ramacharitmanas Ka tulanatmak adhayayan।
डॉ शुक्ला एक हिंदी प्राध्यापक के रूप में 1962 में मोदी नगर में Multanimal मोदी पीजी कॉलेज में शामिल होने से अपना कैरियर शुरू किया। अपनी पीएचडी प्राप्त करने के बाद, वह शामिल हो गए [[राजधानी कॉलेज] दिल्ली विश्वविद्यालय], नई दिल्ली 1 अगस्त को एक हिंदी संकाय सदस्य, 1986 में 1967, वह हिंदी विभाग के रीडर के रूप में नियुक्त किया गया था और में, उनकी सेवानिवृत्ति तक वहां काम करने के रूप में 2005
डॉ रमा कान्त शुक्ला कई सेमिनारों और सम्मेलनों में भाग लिया है सहित विश्व संस्कृत सम्मेलन उन्होंने कहा कि भारतीय सौंदर्यशास्त्र और कविता और संस्कृत साहित्य पर अखिल भारतीय ओरिएंटल सम्मेलन की अध्यक्षता में आयोजित किया गया है और संस्थापक के मुख्य संपादक है Arvacheena-Sanskritam, Devavani परिषद, दिल्ली, द्वारा प्रकाशित एक त्रैमासिक पत्रिका वह की स्थापना की है एक संगठन है। उन्होंने यह भी में भाग लिया है ऑल इंडिया रेडियो Sarvabhasha कवि सम्मेलन संस्कृत भाषा का प्रतिनिधित्व।
पुस्तकें
डॉ शुक्ला संस्कृत और हिंदी में कई पुस्तकें लिखी है, उन्होंने यह भी लिखा है और एक संस्कृत टेलीविजन श्रृंखला का निर्देश दिया है, भाटी मेरे Bharatam, द्वारा प्रसारितदूरदर्शन
- डॉ रमा कान्त शुक्ला (1993)। Devavani-suvasah - डॉ रमा कान्त शुक्ला सम्मान मात्रा । Devavani-Prakasanam। ISBN 978-8190030854 ।
- डॉ रमा कान्त शुक्ला (1979)। Arvācīnasaṃskr̥tam । नई दिल्ली:। Devavāṇī-परिसाद LCCN 81,910,313 ।
- डॉ रमा कान्त शुक्ला (1980)। मुझे Bhāratam भाटी । नई दिल्ली:। Devavāṇī-परिसाद LCCN 83,906,451 ।
- डॉ रमा कान्त शुक्ला (2000)। Sārasvata-संगम । नई दिल्ली:। Jñānabhāratī Pablikeśansa LCCN 99,956,208 ।
- रमा कान्त शुक्ला (2000)। संस्कृत कवि और विद्वान रमा कान्त शुक्ला अपने कार्यों से पढ़ता है । नई दिल्ली: दक्षिण एशियाई साहित्य रिकॉर्डिंग परियोजना (कांग्रेस के पुस्तकालय)।ओसीएलसी 47,738,659 ।
- डॉ रमा कान्त शुक्ला (2002)। "Bharatajnataham" । वैदिक पुस्तकें। 27 अक्टूबर 2014 को लिया गया।
डॉ शुक्ला राष्ट्रीय संस्कृत संस्कृत संस्थान में शास्त्र Chudamani Vidwan रूप में अपने कर्तव्यों के लिए भाग लेने नई दिल्ली में रहती है। [3]
पुरस्कार और सम्मान
डॉ रमा कान्त शुक्ला संस्कृत Rashtrakavi, Kaviratna, कवि Siromani और हिन्दी संस्कृत सेतु विभिन्न साहित्यिक संगठनों द्वारा खिताब की एक प्राप्तकर्ता है। उन्होंने भी इस तरह के रूप में खिताब से सम्मानित किया गया कालिदास सम्मान , संस्कृत साहित्य सेवा सम्मान और संस्कृत Rashtrakavi।
वह भी दिल्ली संस्कृत अकादमी की ओर से अखिल भारतीय Maulika संस्कृत रचना Puraskara प्राप्त हुआ है, जबकि उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य पुरस्कार के साथ डॉ शुक्ला को सम्मानित किया गया है। भारत के राष्ट्रपति 2009 में उसे संस्कृत विद्वान पुरस्कार से सम्मानित किय और भारत सरकार के नागरिक सम्मान पीएफ इसके बाद पद्मश्री , 2013 में, उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृत Ptrakar संघ के संस्थापक अध्यक्ष हैं।
शुक्रवार, 11 सितंबर 2015
आधुनिक भारत में भाषा की दुर्दशा
. वर्तमान समय हम अपनी सभ्यता और संस्कृति को भूलते जा रहे हैं । हम पाश्चत्य सभ्यता और संस्कृति का अंधानुकरण कर रहे हैं । यह एक चिंतनीय विषय है । हम अँग्रेजी को एक भाषा के रूप में न पढ़कर एक अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ रहे हैं । देश के लिए इससे अधिक शर्म की बात और क्या होगी की हम अपनी भाषा का अपने ही घर में उपहास कर रहे हैं । लोग मानसिक शान्ति के लिए भारतीय वेद का अध्ययन करने देश -विदेश से चले आ रहे हैं और हम अपनी भाषा को उपेक्षित कर रहे हैं।
डॉ. मनोरमा तिवारी के काव्य में संगीत कला
आदि काल से ही भारतवर्ष विभिन्न कलाओं की उत्स भूमि रहा है। हमारे देश में विभिन्न प्रकार की कलाएँ और शास्त्र उपलब्ध होते रहे हैं। नृत्य, गीत, संगीत, स्थापत्य आदि जितनी भी कलाएं हैं, उन सभी का जन्म इसी धरती पर हुआ है। हीगेल ने अपने ग्रन्थ 'हिगेलियन क्लासिफिकेशन ऑफ फाइन आर्ट्स' में काव्य कला को सर्वश्रेष्ठ माना है। उन शास्त्रों और कलाओं में सङ्गीत विधा का अपना एक अलग ही महत्त्व है। नृत्य एक ऐसी कला है जिसमें सौन्दर्य और कला दोनों का समन्वय है। मानव का सम्बन्ध संगीत से वैदिककाल से ही रहा है। वर्तमान में जो सङ्गीत हम देख -सुन रहे हैं, उन सब का उद्भव और विकास वैदिककाल में ही हो चुका था। केवल मनुष्य ही नहीं समस्त जीव-जन्तु इस महनीय कला के प्रति आकर्षित होते हैं। सामवेद गेय शैली में निबद्ध है। सामवेद के अनुसार गान चार प्रकार के होते हैं- 1.ग्राम या गेयगान 2.अरण्य गेयगान 3. ऊहगान 4. उह्यगान। यज्ञ के अवसर पर उद्गाता के द्वारा मन्त्रों का सस्वर गान किया जाता था। हमारे जो सोलह संस्कार हैं वे भी कहीं -न -कहीं जन्म से लेकर मृत्यु तक सङ्गीत से सम्बन्धित हैं। जो आर्षकाव्य, पुराण आदि से होता हुआ वर्तमान स्वरूप में आ गया।
समकालीन संस्कृत विदुषियों में डॉ. मनोरमा तिवारी का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। डॉ.तिवारी उ.प्र. के लखनऊ जनपद में डी.ए.वी. कॉलेज में संस्कृत की विभागाध्यक्ष का पद अलंकृत कर चुकी हैं। 'संस्कृत गीत मालिका' आपके द्वारा प्रणीत संस्कृत गीतों की एक उत्कृष्ट रचना है। इस रचना का प्रकाशन वर्ष 1981 में भारतीय संस्कृत संस्थान (महिला शाखा ) कैमरन रोड, लखनऊ से हुआ।
बुधवार, 9 सितंबर 2015
अरुण निषाद Arun Nishad: मेरे दोस्त तुझको ये क्या हो गया। तेरा रुख़ कितना ...
अरुण निषाद Arun Nishad: मेरे दोस्त तुझको ये क्या हो गया। तेरा रुख़ कितना ...: मेरे दोस्त तुझको ये क्या हो गया। तेरा रुख़ कितना बदल है गया।। वफ़ा मैंने की है वफ़ा चाहता हूँ। न जाने तू क्यों बेव...
सोमवार, 20 जुलाई 2015
गीतगोविन्द
गीतगोविन्द
संस्कृत के महान पंडित एवं संगीतज्ञ पं. जयदेव ने इस अमर कृति की रचना १२ वीं शताब्दी में की थी. उनका जन्म बंगाल के केंडला नामक स्थान में हुआ था. उनकी पत्नी का नाम विद्यावती था जो पुरी. उड़ीसा की रहने वाली थीं. उ के पद भाव.रस और लालित्य में उच्च कोटि के हैं. उनके गीतों में मथुरा- वृन्दावन की झाँकी और राधाकृष्ण की प्रेम -लीला का विशद वर्णन मिलता है.जब श्रीकृष्ण गोकुल से मथुरा चले जाते हैं तो गोप-गोपियाँ और राधा उनकी विरह से परेशान हो जाती हैं.उनके गीत राधा को कृष्ण की और कृष्ण को राधा की मन:स्थितं का ज्ञान कराती हैं. जयदेव का सम्पूर्ण जीवन कृष्णमय था.
विद्यापति और चण्डीदास जैसे कवि जयदेव के गीतों से बड़े प्रभावित थे. राजाशिव सिंह ने विद्यापति को 'अभिनव जयदेव' की उपाधि से विभूषित किया था. कुछ विदेशी विद्वान भी इनके पदों से बहुत प्रभावित हु़ए.सर एडविन अनल्डि ने इसका अंग्रेजी अनुवाद किया.और उसका नाम The Song of Song अर्थात् भारतीय गीतों का गीत रखा. अंग्रेजी के अतिरिक्त इसका अनुवाद लैटिन और फ्रेंच भाषा में भी हो चुका है.
संस्कृत के महान पंडित एवं संगीतज्ञ पं. जयदेव ने इस अमर कृति की रचना १२ वीं शताब्दी में की थी. उनका जन्म बंगाल के केंडला नामक स्थान में हुआ था. उनकी पत्नी का नाम विद्यावती था जो पुरी. उड़ीसा की रहने वाली थीं. उ के पद भाव.रस और लालित्य में उच्च कोटि के हैं. उनके गीतों में मथुरा- वृन्दावन की झाँकी और राधाकृष्ण की प्रेम -लीला का विशद वर्णन मिलता है.जब श्रीकृष्ण गोकुल से मथुरा चले जाते हैं तो गोप-गोपियाँ और राधा उनकी विरह से परेशान हो जाती हैं.उनके गीत राधा को कृष्ण की और कृष्ण को राधा की मन:स्थितं का ज्ञान कराती हैं. जयदेव का सम्पूर्ण जीवन कृष्णमय था.
विद्यापति और चण्डीदास जैसे कवि जयदेव के गीतों से बड़े प्रभावित थे. राजाशिव सिंह ने विद्यापति को 'अभिनव जयदेव' की उपाधि से विभूषित किया था. कुछ विदेशी विद्वान भी इनके पदों से बहुत प्रभावित हु़ए.सर एडविन अनल्डि ने इसका अंग्रेजी अनुवाद किया.और उसका नाम The Song of Song अर्थात् भारतीय गीतों का गीत रखा. अंग्रेजी के अतिरिक्त इसका अनुवाद लैटिन और फ्रेंच भाषा में भी हो चुका है.
मंगलवार, 10 मार्च 2015
एकदिवसीयराष्ट्रियसंगोष्ठी
राष्ट्रियसंस्कृतसंस्थानम्
वेदव्यासपरिसरः, बलाहरः, हिमाचलप्रदेशः
एकदिवसीयराष्ट्रियसंगोष्ठी - दिनाङ्कः - 19 मार्च 2015
“नाट्यशाश्त्रोक्तकरणाङ्गहाराणां प्रायोगिकपक्षा:”
(The practical aspects of karaṅas & aṅgahāras of Nāṭyaśāstra)
पत्रसं. दिनाङ्कः – 11.02.2015
सूचना
आचार्यभरतकृतं नाट्यशास्त्रम् अभिनयकलाक्षेत्रे सम्प्रति समुपलब्धेषु लक्षणग्रन्थेषु आद्यमस्ति यत्र गीतातोद्यनृत्याभिनयादीनां साङ्गोपाङ्गवर्णनम् अत्यन्तं सूक्ष्मतया व्यापकतया च विहितमस्ति। अभिनयकलायां नृत्तप्रयोगे अङ्गहाराणां करणानां च विशिष्टं स्थानमस्ति। अङ्गहाराणां निष्पत्तिः करणैः भवति। नृत्तस्य हस्तपादसमायोगश्च करणमित्युच्यते। एतेषां करणाङ्गहाराणाम् औचित्यं प्रयोगधर्मितां च विवेचयितुं “नाट्यशाश्त्रोक्तकरणाङ्गहाराणां प्रायोगिकपक्षा:” (The practical aspects of karaṅas & aṅgahāras of Nāṭyaśāstra) इति शीर्षकमादाय “राष्ट्रियसंस्कृतसंस्थानम्, वेदव्यासपरिसरः, बलाहरः, हिमाचलप्रदेशः” इत्यस्यसाहित्यविभागः मार्च-2015-मासस्य 19तमे दिनाङ्के एकदिवसीयां राष्ट्रियसंगोष्ठीम् एकां समायोजयति। यत्र शोधपत्रवाचनाय/प्रतिभागितायै प्रतिभागिताशुल्कमधोनिर्देशानुसारमस्ति।
· परिसरीयप्रतिभागिनां कृते - रू. 100/-
· बाह्यप्रतिभागिनां कृते -रू. 500/-
प्रतिभागितायै/शोधपत्रवाचनाय इच्छुकाश्छात्रा अध्यापकाश्च स्वीयमावेदनं / शोधपत्रसारं संस्कृत/हिन्दी/Englishभाषया Arial Unicode MS font / word format इति आश्रित्य टङ्कयित्वा sahityavedavyasa@gmail.com इत्यत्र 28.02.2015दिनाङ्कमध्ये अवश्यं प्रेषयेयुः। बाह्यप्रतिभागिनां कृते भोजनावासव्यवस्थाकल्पने वयं गौरवमनुभविष्यामः।
समन्वयकः अध्यक्षः
सुज्ञानकुमारमाहान्तिः प्रो.लक्ष्मीनिवासपाण्डेयः
मो.संख्या – 91+9625627362 प्राचार्यः
संस्कृतपत्रिकाः
Journal of the Royal Asiatic Society Formerly Journal of the Royal Asiatic Society of Great Britain and Ireland | http://journals.cambridge.org | ||
धीमहि | Pondichery University, Pondichery,(UT) India | http://www.pondiuni.edu.in/ | |
गीर्वाणी | मासिकी | Samskritabhavanam, Pracharini Sabha, Chittoor 510 700 Andhra Pradesh | |
महास्विनी | षाण्मासिकी | Rashtriya Sanskrit Vidyapeetham, Tirupati, Andhra Pradesh 517 507 0877-2287649 | http://rsvidyapeetha.ac.in |
आरण्यकम् | षाण्मासिकी | Samskrita Pracara Parishad, Marutimandiram, Prakashapuri, Ara, 802 301 Bihar | |
संस्कृतसम्मेलनम् | त्रैमासिकम् | Sriramaniranjanamuraraka, Samskritamahavidyalaya, Chowk, Patna 8, Bihar | |
आर्षज्योतिः | मासिकम् | Srimad Dayananda Vedavidyalaya, 119 Gautamanagara, New Delhi 110 049 | |
संस्क्तामृतम् | मासिकम् | 1418 Bazar Guliya, Delhi 110 006 | |
अर्वाचीनसंस्कृतम् | त्रैमासिकम् | Deva Vani Parishad, 6 A Vanivihara, New Delhi 59 | |
शोधप्रभा | त्रैमासिकी | Shri Lal Bahadur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapeetham, Katwaria Sarai, New Delhi 110 016 | http://www.slbsrsv.ac.in |
संस्कृतमञ्जरी | त्रैमासिकी | Delhi Sanskrita Academy, Flat-5, Jhandewale, Karol Bag, New Delhi | |
संस्कृतवार्ता | त्रैमासिकी | Rashtriya Sanskrit Sansthan, Manitavishvavidyalaya, 56-57 Institutional Area, Janakapuri, New Delhi 58 | http://www.sanskrit.nic.in |
संस्कृतविमर्शः | वार्षिकः | Rashtriya Sanskrit Sansthan, (deemed University) 56-57, Institutional Area, Janakpuri, New Delhi-58, India | http://sanskrit.nic.in/SVimarsha/sv.htm |
संस्कृतवर्तमानपत्रम् | दैनिकम् | Maharaja Savaji Rao Vishvavidyalaya, Badodara-390001Gujarat. | http://www.sanskritvartmanpatram.com |
विश्वस्य वृत्तान्तम् | दैनिकम् | 55, Swami Narayan Society, Vibhag 1, Sheri 2, Puna Gam Road, Surat (mobile 9898478454) | http://www.slideshare.net/PracticalSanskrit/documents |
नन्दनवनकल्पतरुः | षाण्मासिकी | Vijayashilacandrasuri, A-9, Jagriti Flats, Behind Mahavira Tower, Paladi, Ahmedabad 380 007 | |
हितसाधिका | पाक्षिकी | Premanagara, Yamunanagara, Harayana, 135 001 | |
दिव्यज्योतिः | मासिकम् | Anand Lodge, Jakhoo, Shimla, Himachal Pradesh | |
संस्कृतप्रचारकः | मासिकः | 105 Pradhyapakanivasa, Himachal Pradesh Vishvavidyalaya | |
रावणेश्वरकाननम् | मासिकम् | Chitabhumi, Chandradatta Dara Road, P T Vilasi, Vaidyanatha, Deoghar 814 117, Jharkhand | |
सम्भाषणसन्देशः | मासिकः | Aksharam, Girinagaram, Bangalore 560 085. 080 2672 2576/1052 | http://www.sambhashanasandesha.in |
सुधर्मा | दैनिकी | Ramacandra Agraharam, Shrikanta Pavar Press, Mysore 470 004 | http://www.sudharma.epapertoday.com |
रसना | मासिकी | Asmitha Publications, Yeshodha Building, Puthiyara PO, Kozhikode 673 004 Kerala | |
कामधेनुः | पाक्षिकी | Bharata Vidyapeetham, Irayliyar, Trichur, 860 501 Kerala | |
भारतमुद्रा | मासिकी | Purnattukura, Thrichur, 680 550 | |
दुर्वा | त्रैमासिकी | Kalidasa Sanskrit Akademy, Ujjain, Madhyapradesh, India | |
नाट्यम् | त्रैमासिकम् | Natyaparishad Samskrita Department, Dr Harisimhagaura Vishvavidyalaya, Sagar, Madhya Pradesh 470 003 | |
शारदा | साप्ताहिकी | Pandita Vasanta Ananta Gadagil 1 Jhelam, Patrakaranagar, Pune 411016 | http://www.esharada.com |
गुञ्जारवः | पाक्षिकः | Kaleshvaramandiram, Ghumer Gali, Ahmednagar Maharashtra | |
गीर्वाणसुधा | मासिकी | Indiranivasa A G Street, Mumbai 400 004 Maharasthra | |
सम्विद् | त्रैमासिकी | Bharatiya Vidya Bhavan, Kulapati K.M.Munshi Marg, Chowpatty, Mumbai 400 007 | http://www.bhavans.info |
स्रग्धरा | मासिकी | Subhadra Nagar, Balighat, Puri - 2, Orissa | E-mail - drpcmsjsv@gmail.com |
अमृतभाषा | मासिकी | Amritabhavanam, Kalidasapura, Haripura, Motiganj, Baleshvara, Orissa 756 003 | |
प्रियवाक् | द्वैमासिकी | Samskritabhavana, Lokanathamarga, Puri, Orissa | |
दिग्दर्शिनी | त्रैमासिकी | Utkala Samskrita Gaveshana Samaj, Puri, Orissa | |
वसुन्धरा | त्रैमासिकी | Orissa Samskrita Academy Vashistyayogashrama, Tank Pani Road, Bhuvaneshwar, 751 018 Orissa | |
संस्कृतमन्दाकिनी | षाण्मासिकी | Lokabhashapracarasamiti, Sarasvativihar, Varapada, Bhadraka, Orissa, 756 113 | |
लोकप्रज्ञा | वार्षिकी | Lokabhashapracarasamiti, Sarasvativihar, Varapada, Bhadraka, Orissa, 756 113 | |
श्रीजगन्नाथज्योतिः | षाण्मासिकी | Srijagannatha Samskrita Vishvavidyalaya, Srivihara, Puri , 752 003 Orissa | http://sjsv.nic.in |
प्राची सुधा | षाण्मासिकी | Dharmashastra Dept, Srijagganath Vedakarmakanda Mahavidyalaya, Puri, Orissa | |
लोकभाषासुश्रीः | मासिकी | LOKABHASA Prachar Samithi, Sarasvati Vihar, Barapada, Bhadrak, Odisha, India- 756113 | http://samskrita.co.in/sushreeh.php |
जाह्नवी | त्रैमासिकी | http://www.jahnavisanskritejournal.com | |
लोकसंस्कृतम् | त्रैमासिकम् | Samskrita Karyalaya, Sri Aurobindo Ashram, Pondicherry, 605 022 | http://www.sanskrit.sriaurobindoashram.org.in, http://www.saice.org/sanskrit |
स्वरमङ्गला | त्रैमासिकी | Rajasthan Sanskrit Academy, Vireshvabhavanam, Ganagauri Bazar, Jaipur, Rajasthan | |
भारती | मासिकी | Bharatibhavanam, B-15, Vijayakhanna Nagar, Jaipur 302 001, Rajasthan | |
News in Sanskrit/Hindustan Samachar | Dr.Jayaram Chennai | e-mail hs.sampadak@gmail.com | |
भारतोदयः | मासिकः | Gurukulamahavidyalaya, Jvalapuram, Haridwar 249 405. Uttaranchal 814 117 | |
नवप्रभातम् | दैनिकम् | Sharadanagaram, Kanpur. 208 025 UP | |
दिग्वार्ता | दैनिकी | 14 Ghatiya Ajamat Ali, Etawa, UP 266 001 | |
गाण्डीवम् | साप्ताहिकम् | Gandiva Karyalaya, Sampurananda Samskrita Vishvavidyalaya, Varanasi, UP | http://ssvv.up.nic.in |
युगगतिः | साप्ताहिकी | Bakshipur, Gorakhpur, 273 001 UP | |
गोरखपुरचर्चा | पाक्षिकी | Bakshipur, Gorakhpur, 273 001 UP | |
संस्कृतामृतम् | साप्ताहिकम् | Hayatganj, Tanda, Ambedkar Nagar UP | |
संस्कृतसाकेतम् | पाक्षिकम् | Saketakaryalaya, Akhila Bharatiya Vidvatsamiti, Ayodhya, UP | |
पारिजातम् | मासिकम् | 105/94 Premanagara, Karnapura, Kanpur 208 001 UP | |
प्राची प्रज्ञा | मासिकी अन्तर्जालपत्रिका (वार्ताः,सूचनाः,काव्यानिच) | DR. SUGYAN KUMAR MAHANTY RASHTRIYA SANSKRIT SANSTHAN, VEADVYAS CAMPUS, BALAHAR, DIST. KANGRA, TEHSIL-RAKKAR, H.P., PIN – 177108. | https://sites.google.com/site/praachiprajnaa |
Journal of the Ganganath Jha Research institute, Allahabad, U.P. | Annual Research Journal | Ganganathjha Campus of Rashtriya Sanskrit Sansthan, Chandrasekhar Azad Park, Allahabad,UP,India | Email-principal.alld@gmail.com |
पद्यबन्धा | षाण्मासिकी कविता | Veenapani Sanskrit Peetham, L-145,Sant Asharam Nagar, Laharpur,Bhopal-462043, India | Email- padyabandha@gmail.com |
वाक् | पाक्षिकी वार्तापत्रिका | Shri Buddha Dev Sharma, 11 Nalapani Rord, Dehradun-248001 | www.vaksanskrit.com |
सत्यवती | त्रैमासिकी महिलाशोधपत्रिका | Womens' Study Centre, Rashtriya Sanskrit Sansthan, Vedavyas Campus, Balahar, H.P. PIN- 177108 | |
विश्वसंस्क्रुतम् | त्रैमासिकी साहित्यिकपत्रिका | Vishveshvarananda Vaidika Shodha Sansthanam, Sadhu Ashrama, Hoshiyarpura, 151 021 Punjab | |
Visvesvaranand Indological Journal | षाण्मासिकी शोधपत्रिका | विश्वेश्वरानन्द विश्वबन्धुंस्कृत सुरभारत्यनुशीलनसंस्थान, साधु आश्रम, होशियारपुर, पञ्जाब-१४६०२१ | email - vvbis@rediffmail.com |
संस्कृतसाम्प्रतम् | मासिकी सरलसंस्कृतपत्रिका | Ekalavya Samskrita Academy, Core House, Off CG Road, Ellisbridge, Ahmedabad 380 006 / 98246 16237 | http://eklavyasanskritacademy.com |
संस्कृतसाहित्यपरिषत्पत्रिका | त्रैमासिकी | Sanskrit Sahitya Parishat, 168/1, Raja Dinendra Street, Kolkata 700 004, West Bengal | |
Vedic Studies | Annual | School of Vedic Studies, Rabindra Bharati University,56A, B.T. Road, Kolkata 700 050, West Bengal, E-mail: schoolvedicstudies@yahoo.com | http://www.rbu.ac.in |
Journal of the Department of Sanskrit | Annual | Department of Sanskrit, Rabindra Bharati University, 56A , B.T. Road, Kolkata 700 050, West Bengal | |
चन्दामामा | मासिकी | Chandamama India Ltd. No.2 Ground Floor,Swathi Enclave,Door Nos.5 & 6 Amman Koil Street, Vadapalani,Chennai- 600026. Tamil Nadu, India | chandamama.com |
संस्कृतकैराली | वार्षिकी | Dept. of Sanskrit,University of Calicut, Kerala - 673635 | Email - nkswaran@gmail.com |
The Journal of Sanskrit Academy (JSA) | Annual | The Director Sanskrit Academy, (Adarsha Shadha Sansthan, Under Rashtriya Sanskrit Sansthan, New Delhi) Osmania University Campus, Hyderabad - 07 | www.Osmania.ac.in/ sanskritacademyhyd Email : jsaeditor@gmail.com |
अजस्रा | त्रैमासिकी | Akhila Bharatiya Samskritaparishad, Mahatmagandhi Marg, Hajaraganj, Lucknow 226 001 UP | |
वास्तवभारतीयम् | मासिकी | Srimaheshamandiram, Dinadayalanagara, Sitapuramarga, Lucknow 226 020 UP | |
सर्वगन्धा | मासिकी | Maiji Mandiram, Ashfarabad, Lakshmanapura, Lucknow 226 003 UP | |
सूर्योदयः | मासिकः | Bharatadharma Mahamandalam, Jagatganj, Laghuravira, Varanasi, UP | |
सन्देशः | द्वैमासिकः | 2/132 Balaganja, Kanpur, UP | |
परिशीलनम् | त्रैमासिकम् | Uttar Pradesh Samskrita Academy, Samskritabhavanam, New Hyderabad, Lucknow 226 006 UP | |
पवमानी | त्रैमासिकी | Gurukul Prabhata Ashrama, Teekari, Bholjhal, Meerut, UP | |
प्रभातम् | त्रैमासिकम् | Samanvayakutiram, E-1052, Rajapur, Lucknow 226 017 UP | |
व्रजगन्धा | त्रैमासिकी | Ramashraya, Krishnapuri, Mathura, 281 001 UP | |
श्रीपण्डितम् | त्रैमासिकम् | Madhusudanashastri Bhavanam, Bhadaini, Varanasi, UP | |
सङ्गमनी | त्रैमासिकी | Samskrita Sahitya Parishad, Daraganj, Prayag, UP | |
विश्वभाषा | त्रैमासिकी | Vishvasamskrita Pratishthanam, Ramanagaradurgam, Varanasi 221 001 UP | |
भास्वती | द्वैमासिकी | Samskrita Dept, Kashividyapeetham, Varanasi, UP, 221 002 0542-2222689 | http://www.mgkvp.ac.in |
ललिताकविभारती | द्वैमासिकी शोधपत्रिका | Lalita Kavi-Bharati, Kishor Vidya Niketan, B-2/236-A, Bhadaini, Varanasi-1 | |
सत्यानन्दम् | मासिकम् | Satyanandadevayatanam, 1 Ibrahim Puram, Rajamarga, Yadavapura, 700 032, West Bengal | |
विश्वानि | Sanskrit webzine which has been brought out by students from various US universities | http://www.speaksanskrit.org/vishvavani.shtml | |
दृक् | द्वैमासिकी शोधपत्रिका | Drigbharati, M-1/32, Avas Vikasa Colony, Jhoonsi, Allahabad 210 019 | |
वयम् | Biannual ,Peer Reviewed Research Journal | Jagadguru Ramanandacharya Rajasthan Sanskrit University, Village: Madau, Post: Bhankrota, Jaipur - 302026 (Rajasthan) | http://rrsanskrituniversity.ac.in |
कथासरित् | षाण्मासिकी कथापत्रिका | Kathabharati,57, Vasantvihar,Jhansi, Allahabad-211019, India | email- kathasarit@gmail.com |
सागरिका | त्रैमासिकी शोधपत्रिका | Natyaparishad Samskrita Department, Dr Harisimhagaura Vishvavidyalaya, Sagar, Madhya Pradesh 470 003 | |
पूर्णत्रयी | षाण्मासिकी | Rajakiya Samskrita Mahavidyalaya, Tripunithura, 682 301 Kerala | |
वैदिकवाग्ज्योतिः(An International Referred Research Journal On Vedic Studies) | Biannual, ISSN 2277-4351 | Department of Veda, Gurukula Kangri Vishwavidyalaya, Haridwar – 249404, Uttarakhand | Email- dineshcshastri@gmail.com |
भारतीयविद्या (BHARATIYA VIDYA) | Quarterly Research Journal | Bharatiya Vidya bhavan, Mumbai | http://www.bhavans.info/periodical/vidya.asp |
निकषा (Online Refereed Journal of Sanskrit Studies) ISSN-2277-6826 | Quarterly Research Journal | Umesh Kumar Singh (Senior Research Associate, Centre for Indic Studies, University of Massachusetts, USA) | http://sangamanee.com/Nikasha.htm |
ELECTRONIC JOURNAL OF VEDIC STUDIES, ISSN 1084-7561 | Monthly Research Journal | published by the American Theological Library Association, 300 S. Wacker Dr., Suite 2100, Chicago, IL 60606, E-mail: atla@atla.com, WWW:http://www.atla.com, Arch. Ludovico Magnocavallo | http://www.ejvs.laurasianacademy.com/ |
Nava Gavesana, (A Bi-lingual Refereed Journal),(ISSN:0976-9455) | Dr. Viveka Pandey, Editor-in-chief, Nava Gavesana(An International Research Journal), Flat#3, Priya Apartments, Kamachha, Varanasi-221010(INDIA). | http://navagavesana.wordpress.com/tag/sanskrit-research-journal | |
वाकोवाक्यम्, ISSN 0975-4555 | International Half yearly Research Journal | Flat#3, Priya Apartments, Kamachha, Varanasi-221010(INDIA) | e-mail to vakovakyam॒yahoo.co.in |
संस्कृतवाणी, ISSN 2349-0586 | पाक्षिकी | Govind Prasad Sharma, 174, Ramanuj Marg, Ibrahimpur, Delhi-36 | Email - sanskritvanee@gmail.com |
मन-प्रकाश ISSN 2319-135X | Annual research journal in sanskrit | Dr. Mahaendra Singh Nagar (Chief Editor),Dr.Dilip Kumar Nathani Prabhari ,Sanskrit Shodh Prakoshth, MMPP Meharangar museum trust, Jodhpur Fort Rajasthan | |
'प्राच्य मंजूषा' | Quarterly | Pt. Baijnath Sharma Prachya Vidya Shodh Sansthan "Asha Nilay", Shyam Mil Compound, Navipur Road (Near RD Girls Degree College) Hathras-204101 (UP) | http://ptbn.in/PrachyaManjusha.aspx |
वेदाङ्गवाणी I.S.S.N. No. - 2349- 0861 | त्रैमासिकी शोधपत्रिका | प्रो. (डॉ.) ताराशंकर शर्मा 'पाण्डेय' (प्रधान संपादक) - डॉ. रवि शर्मा (संपादक) - | prof.tspandeya@gmail.com , ravisharma21111@gmail.com |
रचनाविमरशः I.S.S.N. No. - 2349- 6033 | त्रैमासिकी शोधपत्रिका | प्रो. (डॉ.) ताराशंकर शर्मा 'पाण्डेय' (प्रधान संपादक) +91-98292-71351 - prof.tspandeya@gmail.com | prof.tspandeya@gmail.com |
वेदनादसरित् | मासिकी संस्क्रुतवार्तापत्रिका | Nadaveda Adhyayna Kendra, JP Nagar, Bangalore | http://nvak.tripod.com/ |
वेदगङ्गा | वार्षिकी संस्कृतशोधपत्रिका | Nadaveda Adhyayna Kendra, JP Nagar, Bangalore | http://nvak.tripod.com/ |
संस्कृतवार्ताः | Daily | Prasara Bharati/DooradarShanam (India's Public Broad Caster) | http://www.newsonair.com/language-Text-bulletins-archive-search.asp |
देवसायुज्यम् | त्रैमासिकम्, वार्ताः, काव्यानि, संस्कृतलेखाश्च | Dr. Praful Purohit, L-2, New Vikrambag, Lecturers' Quarters, Pratapganj, Vadodara, PIN- 390002, Gujrat, India, | Email - praful4545@yahoo.com |
सुसंस्कृतम्, ISSN 2277-7024 | अर्धवार्षिकी अन्ताराष्ट्रिया शोधपत्रिका | प्रधानसम्पादकः - डा. हरिप्रसाद अधिकारी सुरुचिकलासमितिः, B-23/45,Gha-A-S,Nai Bazar, Khojvan, Varanasi,U.P. PIN - 221010, India, Phone No. 91+9450016201,9451894408, 9415619775 | Email - sanskrit_griham@yahoo.in, suruchikalas@yahoo.in |
परिशीलन | त्रैमासिक अन्ताराष्ट्रियशोधपत्रिका | डा.अंजनीकुमारमिश्र (प्रधानसम्पादकः, सुरुचिकलासमितिः, B-23/45,Gha-A-S,Nai Bazar, Khojvan, Varanasi,U.P. PIN - 221010, India, Phone No. 91+9450016201,91+542-2310854 | Email - suruchikalas@yahoo.in, journalwh@gmail.com |
सुरभारती | षाण्मासिकी | Surabharati Seva Sansthan, Mainpuri, U.P. India | kalpanadwivedi2011@gmail.com |
प्रज्ञालोकः | Annual Research Journal, | The Dept of Sanskrit, of Ramakrishna Mission Vivekananda University. Belur Math, Howrah-711202, West Bengal. India. | http://www.rkmvu.ac.in |
शेवधिः | Half Yearly Research Journal | प्रकाशनपरिशोधनविभागः, श्रीवेङ्कटेश्वरवेदविश्वविद्यालयः, अलिपिरि- चन्द्रगिरिमार्गः,तिरुपतिः, आन्द्रप्रदेशः -517502, दूरवाणी- +91- 8330938736, 09347036763 | svvusevadhi@gmail.com |
दिशा-भारती | संपादकः - डॉ. जीतराम भट्टः , कार्यालयः- ६५- डी, एस. एफ. एस., एम. आई. जी. मोतियाखानः, पहाडगंजः, नव देहली - ११००५५ | disha.bharati@yahoo.in | |
संस्कृतप्रतिभा | त्रैमासिकी | Editor in Chief:Prof. Radhavallabh Tripathi, Sahiyta Bhavan Marg, Ravindrabhavan Marg, New Delhi 1 | |
व्यासश्रीः | Bi annual Refereed Research Journal on Indology | Editor in chief :Dr. Buddheswar Sarangi, Maharshi Vyasadeva National Research Institute, Vedavyas, Rourkela, Odisha, Contact No. 08017203932 | Email - vyasasri12@gmail.com |
ऋतायनी | Bilingual Research Journal on Sanskrit | Dr. Jagamohan Acharya, Kharagpur College, Inda, West Bengal, India, Contact - 9002231586 | |
श्रीगुरुसार्वभौमः | सांस्कृतिक-संस्कृत-मासपत्रिका | Editor- Dr. v.R.Panchamukhi, Pub. Dr. N.Vadirajachar, Shrigurusarvabhauma Sanskrit Vidyapeetham, Mantralayam,-518345 | email - gururajaoffset@gmail.com |
Journal of Sukritindra Oriental Research Institute, ISSN 2229-3337 | Biannual Research Journal for Oriental Learning | Ed. & Pub. by Dr. V. Nithyanantha Bhat, Sree Niketan, Jew Street, Ernakulam, Kochi-682032, email - sukrtindra@gmail.com | www.sukrtindraoriental.org |
सदस्यता लें
संदेश (Atom)