मेरे दोस्त तुझको ये क्या हो गया।
तेरा रुख़ कितना बदल है गया।।
वफ़ा मैंने की है वफ़ा चाहता हूँ।
न जाने तू क्यों बेवफा हो गया..
बदल सी गयी तेरी नजरें हैं दिलवर।
तेरा कोई और हमसफ़र हो गया।।
मुहब्बत का मुझको सिला ये मिला है।
मेरा प्यार ही अब सज़ा हो गया।।
'अरुण ' जाने क्यों वो बदल से गए हैं।
मेरा दर्द उनका मजा हो गया है.
अरुण निषाद ,सुलतानपुर।
शोध छात्र
लखनऊ विश्वविद्यालय ,लखनऊ।
७७ ,बीरबल साहनी शोध छात्रावास ,
लखनऊ विश्वविद्यालय ,लखनऊ।
मो.9454067032
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