रविवार, 11 अगस्त 2024

अजन्तपुल्लिंगप्रकरणम्

 भूमिका 

व्याकरण=वि+आङ्+कृ+ल्युट्

व्याक्रियते व्युत्पाद्यन्ते शब्दा अनेन इति व्याकरणम् |

व्याक्रियते अनेन इति व्याकरणम् |

व्याकरण - व्याकरण का दूसरा नाम शब्दानुशासन है | वह अनुशासन करता है, बतलाता है कि शब्द का किस प्रकार प्रयोग करना चाहिए | भाषा में शब्दों की प्रवृत्ति अपनी ही रहती है, व्याकरण के कहने से भाषा में शब्द नहीं चलते | भाषा की प्रवृत्ति व्याकरण शब्द का निर्देश करता है | यह भाषा का शासन नहींं करता है | यह भाषा पर शासन नहीं करता, उसकी स्थिति के अनुसार लोक शिक्षण करता है |


किसी भी 'भाषा' के अंग-प्रत्यंग का विशलेषण तथा विवेचन व्याकरण कहलाता है, जैसे कि शरीर के अंग-प्रत्यंग का विश्लेषण 'शरीरशास्त्र' और देश-विदेश आदि का वर्णन भूगोल |

       

यद्यपि बहु नाधीषे तथापि पाठ पुत्र व्याकरणम्

स्वजनो श्वजनो माऽभूत्सकलं शकलं सकृत्शकृत् ||

पुत्र! यद्यपि तुम बहुत विद्वान् नहीं बन पाते हो तो भी व्याकरण अवश्य पढो ताकि स्वजन (अपने लोग) श्वजन (कुत्ता) न बने और सकल (सम्पूर्ण) शकल (टूटा हुआ) न बने तथा सकृत (किसी समय) शकृत (गोबर का ढेर) न बन जाए |


                    

अजन्तपुल्लिंगप्रकरणम्

अर्थवद् अधातुर अप्रत्यय: प्रातिपदिकम्    १|२|४५||

(धातुं प्रत्ययं प्रत्ययान्तं च वर्जयित्वा अर्थवच्छब्दस्वरूपं प्रातिपदिकसंज्ञं स्यात् |)

अर्थात् वह अर्थवान् सार्थक शब्द जो न धातु हो, न प्रत्यय हो और न ही प्रत्यान्त हो, उसे प्रातिपदिक संज्ञा कहा जाता है |

कृत्ततद्धितसमासाश्च   १|२|४६||

(कृत्तद्धितान्तौ समासाश्च तथा स्यु: )

कृत् अर्थात् धातु में जोड़े जाने वाले प्रत्यय (कृदन्त), शब्द में जोड़े जाने वाले प्रत्यय तद्धित (तद्धितान्त) और समास की भी प्रातिपदिक संज्ञा होती है |   

स्वौजसमौट्छष्टाभ्यांभिस्ङेभ्यांभ्यस्ङ्सिभ्यांभ्यस्सोसाम्ङ्योस्सुप्  ४|१|२||    

(सु औ जस् इति प्रथमा विभक्ति | अम् औट् शस् इति द्वितीया | टा भ्याम् भिस् तृतीया | ङे भ्याम् भ्यस् इति चतुर्थी | ङसि भ्याम् भ्यस् इति पञ्चमी | ङस् ओस् आम् इति षष्ठी | ङि ओस् सुप् इति सप्तमी |)

अर्थात् सु से लेकर सुप् तक के प्रत्यय को सुप् के नाम से जाना जाता है या अभिहित किया जाता है | यह 21 होते हैं |

प्रथमा विभक्ति-सु औ जस् |

द्वितीया विभक्ति-  अम् औट् शस्  |

तृतीया विभक्ति-  टा भ्याम् भिस्  |

चतुर्थी विभक्ति- ङे भ्याम् भ्यस्  |

पञ्चमी विभक्ति- ङसि भ्याम् भ्यस् |

षष्ठी विभक्ति-  ङस् ओस् आम् |

सप्तमी विभक्ति-ङि ओस् सुप्  |

 

ङ्याप् प्रातिपदिकात् ४|१|१||

(ङ्यन्तादाबन्तात् प्रातिपदिकञ्च परे स्वादय: प्रत्यया: स्यु: |)

ङ्यन्त (अर्थात् ङीप्, ङीष्, ङीञ् ) आबन्त (डाप्,  टाप् और चाप्) तथा प्रातिपदिक के बाद में सु प्रत्यय जुड़ता है |

प्रत्यय: ३|१|१|    

(आपञ्चमसमाप्तेऽधिकारोऽयम् |)

अष्टाध्यायी में पञ्चम अध्याय पर्यन्त इसका अधिकार सूत्र है |

परश्च ३|१|२||

(अयमपि तथा |)

अर्थात् प्रत्यय बाद में जुड़ता है |

सुप: १|४|१०३||

(सुपस्त्रीणि त्रीणि वचनान्येकश एकवचन-द्विवचन-बहुवचन-संज्ञानि स्यु: |)      

यह 21 प्रत्यय क्रमशः होंगे |

प्रथमा विभक्ति

राम शब्द के प्रथमा एकवचन में स्वजौ...सूत्र से  राम+सु प्रत्यय जुड़ता है | सु के उकार का उपदेशेऽनुनासिकसूत्र से इत्संज्ञा और तस्य लोप:सूत्र से लोप कर देते हैं | अब यह राम+स हो गया | ‘ससजुषोरु:’ सूत्र से इसे राम+रु कर देते हैं | पुन: ‘उपदेशेऽनुनासिक’ सूत्र से इत्संज्ञा और ‘तस्य लोप:’ सूत्र से रुकार के उ का लोप कर देते हैं | अब यह राम+र बना | ‘खरवसानयोर्विसर्जनीय”’ सूत्र से रकार को विसर्ग कर राम: शब्द हो जाता है, जो प्रथमा विभक्ति एकवचन का रूप है |

राम शब्द के प्रथमा विभक्ति द्विवचन में ‘स्वजौ...’सूत्र से राम+औ प्रत्यय जुड़ेगा | ‘वृद्धिरेचि’ सूत्र से इसे रामौ कर देते हैं, जो प्रथमा द्विवचन का रूप है|

राम शब्द के प्रथम बहुवचन में ‘स्वजौ...’ सूत्र से जस् प्रत्यय जुड़ता है | ‘चुटू’ सूत्र से जस् के जकार का लोप होकर राम+अस् बनता है | ‘प्रथमयो: पूर्वसवर्ण:’ सूत्र से अस् के अकार को दीर्घ होकर रामास् हो गया | अब ससजुषोरु:सूत्र से इसे रामा+रु कर देते हैं | पुन: उपदेशेऽनुनासिकसूत्र से इत्संज्ञा और तस्य लोप:सूत्र से रुकार के उ लोप कर देते हैं |अब यह रामा+र बना | ‘खरवसानयोर्विसर्जनीय”’ सूत्र से रकार को विसर्ग कर रामा: शब्द हो जाता है, जो प्रथमा विभक्ति बहुवचन का रूप है |

सम्बोधन

सम्बोधन विभक्ति प्रथमा एकवचन सबुद्धि संज्ञक हो | सम्बुद्धि का अर्थ है कि- सम्बोधन में आए राम+सु के उकार का ‘उपदेशेऽनुनासिक’ सूत्र से इत्संज्ञा और ‘तस्य लोप:’ सूत्र से लोप कर देते हैं | अब यह राम+सु बचता है | इस राम+स् के सकार की सम्बुद्धि संज्ञा अर्थात् लोप ‘एङह्रस्वात् सम्बुद्धे:’ सूत्र से कर देते और प्रथमा एकवचन हे राम रूप बना देते हैं |

सम्बोधन द्विवचन में राम+औ बनता है | ‘वृद्धिरेचि’ सूत्र से राम+औ मिलकर रामौ बन जाता है | इसमें प्रथमयो पूर्वसवर्ण:’ सूत्र भी लगाना चाहिए था परन्तु ‘नाऽहिति’ सूत्र से उसका निषेध हो गया | ‘नाऽहिति’ सूत्र कहता है कि- यदि अ वर्ण के बाद इच् प्रत्याहार (इ, उ, ऋ, लृ, ए, ओ, ऐ, औ) का कोई वर्ण आए तो उसे ‘पूर्व स्वर्ण एकादश नहीं करते | इसमें राम+अ             

 

द्वितीया विभक्ति

द्वितीया विभक्ति के एकवचन में राम शब्द में ‘स्वौज......’ सूत्र से अम् जुड़ता है | राम+अम् | ‘अमि पूर्व:’ सूत्र से राम का अकार और अम् प्रत्यय का अकार मिलकर ‘रामम्’ बन गया |

द्वितीया विभक्ति के द्विवचन में राम शब्द में औट् प्रत्यय जुड़ेगा | राम +औट् | चुटू सूत्र से औट् के ट् का लोप को जाता है | तब यह राम+औ बचता है | मिलाने पर रामौ शब्द बना जो द्विताया द्विवचन का रूप है |

द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में राम+शस् होगा | शस् प्रत्यय के शकार की ‘लशक्व तद्धिते’ सूत्र से इत्संज्ञा होकर लोप हो गया और राम+अस्  बचा | मिलाने पर रामास् बना | रामास् के स् को ‘तस्माच्छ सो न’ सूत्र से न होकर रामान् हो गया | इस रामान् शब्द के नकार को ‘कुपवाङ्नुम्व्यवायेऽपि’ सूत्र से णकार और ‘पदान्तस्य’ सूत्र से निषेध होकर रामान् शब्द बना जो द्वितीया विभक्ति द्विवचन का रूप है |

तृतीया विभक्ति

तृतीया विभक्ति के एकवचन में ‘टा’ प्रत्यय जुड़ता है | ‘टाङसिङसा मिनात्स्या:’ सूत्र से टा के स्थान पर इन ङसि के स्थान पर आत् और ङस् के स्थान पर स्य हो जाता है | अब राम+टा को राम+इन हो गया | राम अकार और इन प्रत्यय के इकार ‘आद्गुण:’ सूत्र से गुण होकर रामेन् शब्द बना | रामेन शब्द के नकार को ‘अटकुप्वाङनुम्व्यवाये’ सूत्र से णकार होकर रामेण रूप सिद्ध हुआ | जो तृतीया एकवचन का रूप है |

तृतीया विभक्ति के द्विवचन में राम+भ्याम् जुड़ता है | ‘सुपि च’ सूत्र से राम के अंतिम अकार को दीर्घ होकर रामा+भ्याम् हो गया | मिलाने पर रामाभ्याम् सिद्ध हुआ जो तृतीया विभक्ति द्विवचन का रूप है |

तृतीया विभक्ति के बहुवचन में राम शब्द में भिस् प्रत्यय जुड़ेगा | राम +भिस् | ‘अतो भिस् ऐस्’ सूत्र से भिस् की जगह ऐस् हो जाता है | अब यह राम+ऐस् बन गया | ‘वृद्धिरेचि’ सूत्र से यह रामैस् बन जाता है | ‘ससजुषोरु:’ सूत्र से रामैस् को रामरु रूप बना | अब रु के उकार की ‘उपदेशेऽजनुनासिक’ सूत्र से इत्संज्ञा हुई और ‘तस्य लोप:’ सूत्र से उसका लोप होकर ‘रामर’ रूप बना | रामर् के रकार का ‘खरवसानयोविसर्जनीय:” सूत्र से विसर्ग हो गया रामै: रूप सिद्ध हुआ जो तृतीया बहुवचन का रूप है |

चतुर्थी विभक्ति

चतुर्थी विभक्ति के एकवचन में ‘ङे’ प्रत्यय जुड़ता है | राम+ङे | ‘ङेर्य:’ सूत्र से ङे के स्थान पर य हो जाता है | अब यह राम+य बना | ‘स्थानिवदादेशोऽनल्विधौ’ सूत्र  कहता है कि भले ही य सुप् प्रत्यय नहीं है पर आया तो यह ङे प्रत्यय के स्थान पर ही है अत: य को सुप् माना जाए तो ‘सुपि च’ सूत्र से राम के अकार को दीर्घ हो जाएगा, अब यह रामा+य (रामाय) बना जो चतुर्थी विभक्ति एकवचन का रूप है |     

चतुर्थी विभक्ति द्विवचन में भ्याम् प्रत्यय जुड़ता है | राम+भ्याम् | अब ‘सुपि च’ सूत्र से राम के अकार को दीर्घ कर देते हैं | यह रामा+भ्याम् बन जाता है | मिलाने पर यह रामाभ्याम् रूप बनता है, जो चतुर्थी विभक्ति द्विवचन का रूप है |

चतुर्थी विभक्ति के बहुवचन में भ्यस् प्रत्यय जुड़ता है | राम+भ्यस् | ‘बहुवचने झल्येत्’ सूत्र से राम के अकार को एकार हो जाता है |अब यह रामे + भ्यस् बन जाता है | मिलाने पर रामेभ्यस् बना | ‘इसके सकार को ‘ससजुषोरु:’ सूत्र से रामेभ्यस् के स् को रु कर देते हैं (रामेभ्यरु) | अब रामेभ्यरु के उ को ‘उपदेशेऽजनुनासिक’ सूत्र से इत्संज्ञा हुई और तस्य लोप: से इसका लोप होकर रामेभ्यर रूप बना | रामेभ्यर के रकार को ‘खरवसानयोर्विसजनीय:’ सूत्र से विसर्ग होकर ‘रामेभ्य:’ बना | जो चतुर्थी बहुवचन का रूप है |

पञ्चमी विभक्ति

पञ्चमी विभक्ति के एकवचन में ङ्सि प्रत्यय जुड़ता है | राम+ङसि | ‘टाङसिङसामिनात्स्या:’ सूत्र से ङसि के स्थान पर आत् होकर यह राम+आत् बना | ‘सुपि च’ सूत्र से राम के अकार को दीर्घ कर देते हैं – रामा+आत् | मिलाने पर यह रामात् रूप सिद्ध हुआ जो पञ्चमी विभक्ति एकवचन का रूप है |

पञ्चमीं विभक्ति द्विवचन में भ्याम् प्रत्यय जुड़ता है | राम+भ्याम् | ‘सुपि च’ सूत्र से राम के अकार को दीर्घ कर देने पर रामा+भ्याम् रूप बना | मिला देने पर रामभ्याम् रूप बना जो पञ्चमी विभक्ति द्विवचन का रूप है |

पञ्चमी विभक्ति बहुवचन में भ्यस् प्रत्यय जुड़ता है | राम+भ्यस् | ‘बहुवचने झल्येत्’ सूत्र से राम को रामे होकर रामे+भ्यस् बनता है | मिलाने पर रामेभ्यस् बना | इसके सकार को ‘ससजुषोरु:’ सूत्र से रु कर दिया अब यह रामेभ्यरु हो गया | रु के उ का ‘उपदेशेऽजनुनासिक और तस्य लोप:’ से लोप कर दिया | अब यह रामेभ्यर बना | रामेभ्यर के र का ‘खरवसानयोर्विसर्जनीय:’ सूत्र से विसर्ग कर देते है | अब यह रामेभ्य: रूप बना जो पञ्चमी विभक्ति बहुवचन का रूप है |

षष्ठी विभक्ति

षष्ठी विभक्ति एकवचन में ङस् प्रत्यय जुड़ता है | राम+ङस् |‘टाङसिङसामिनात्स्या:’ सूत्र से (इस सूत्र का अर्थ है कि- टा को इन, ङसि को आत् और ङस को स्य कर देना चाहिए) ङस के स्थान पर स्य होकर यह रामस्य बना | जो पष्ठी विभक्ति एकवचन का रूप है |

षष्ठी विभक्ति द्विवचन में ओस् प्रत्यय जुड़ता है | राम+ओस् | ‘ओसि च’ सूत्र से ओस् के पहले आए हुए अकार को एकार कर देते हैं अर्थात् राम्+अ+ओस् के स्थान पर राम् +ए+ओस् कर देते हैं | अब यह रामे+ओस् बन गया | अब ‘एचोऽयवायव:’ सूत्र से एकार को अय् कर देते हैं | अब यह रामयोस् बन गया | ‘ससजुषोरु:’ सूत्र से रामयोस् को रामयोरु कर देते हैं | उपदेशेऽजनुनासिक तथा तस्य लोप: सूत्र से रामयोरु के उकार का लोप कर देते हैं |अब यह रामयोर बन गया | ‘खरवसानयोर्विसर्जनीय:’ सूत्र से रामयोर के रकार को विसर्ग कर देते हैं | विसर्ग करने पर यह रामयो: बन जाता है जो षष्ठी विभक्ति द्विवचन का रुप है |

षष्ठी विभक्ति बहुवचन में आम् प्रत्यय जुड़ता है | राम+आम् | ‘ह्रस्वनद्यापो नुट्’ सूत्र से राम के बाद नुट् जोड़ देंगे | इस सूत्र का आशय है कि-ह्रस्व के बाद नुट् आएगा | यहाँ राम का अकार ह्रस्व है अत: उसी के बाद नुट् आएगा | अब यह राम+नुट्+आम्  बन गया | हलन्त्यम् सूत्र से नुट् के ट का लोप हो गया | अब यह राम+नु+आम् बन गया | उपदेशेऽजनुनासिक तथा तस्य लोप: सूत्र से नु के उकार का लोप कर देते हैं | अब यह राम+न+आम् बन गया | ‘नाऽऽमि’ सूत्र से राम के अकार को आकार होकर रामा+न+आम् हो गया | ‘अटकुप्वाङ्नुम्व्यवायेऽपि’ सूत्र से नकार णकार हो जाता है | अब यह रामाणाम् बन गया जो षष्ठी विभक्ति बहुवचन का रूप है |         

सप्तमी विभक्ति

सप्तमी एकवचन में राम+ङि होता है, स्वजौ....सूत्र से | अब ‘चुटू सूत्र से ङ की इत्संज्ञा कर लोप क्र देते हैं | केवल इ बचा | राम+इ | ‘आद्गुण:’ सूत्र से मिलाने पर रामे रूप सिद्ध हुआ जो सप्तमी एकवचन का रूप है |

इसके द्विवचन में ‘स्वजौ...’ सूत्र से  राम+ओस् होता है | ‘ओसि च’ सूत्र से एकार के ‘अलोऽन्त्य’ सूत्र से अल् के पहले होगा | ‘राम+ए+ओस्’ | एकार को ‘एचोऽयवायाव:’ सूत्र से अय होकर राम+अय+ओस् हो गया | रामायोस् रूप बना | इसके सकार को ‘ससजुषोरु:’ सूत्र से रु कर दिया फिर रु के उकार की ‘उपदेशेऽजनुनासिक’ सूत्र से इत्संज्ञा कर ‘तस्य लोप:’ सूत्र से लोप कर दिया | रकार को ‘खरवसानयोर्विसर्जनीय:’ सूत्र से विसर्ग कर रामयो: सिद्ध किये जो सप्तमी द्विवचन का रूप है |

इसके बहुवचन में ‘स्वजौ...’सूत्र से राम+सुप् होता है | ‘हलन्त्यम्’ सूत्र से प् को लोप कर देते हैं | ‘बहुवचने झल्येत्’ सूत्र से राम के अकार का एकार होकर राम+ए+सु बना | मिलाने पर रामेसु हुआ | ‘आदेशप्रत्ययो:’ सूत्र से सकार को षकार होकर रामेषु रूप बना जो सप्तमी बहुवचन का रूप है |     


अथाजन्तस्त्रीलिङ्गप्रकरणम्

अर्थवद् अधातुर अप्रत्यय: प्रातिपदिकम्    १|२|४५||

(धातुं प्रत्ययं प्रत्ययान्तं च वर्जयित्वा अर्थवच्छब्दस्वरूपं प्रातिपदिकसंज्ञं स्यात् |)

अर्थात् वह अर्थवान् सार्थक शब्द जो न धातु हो, न प्रत्यय हो और न ही प्रत्यान्त हो, उसे प्रातिपदिक संज्ञा कहा जाता है |

कृत्ततद्धितसमासाश्च   १|२|४६||

(कृत्तद्धितान्तौ समासाश्च तथा स्यु: )

कृत् अर्थात् धातु में जोड़े जाने वाले प्रत्यय (कृदन्त), शब्द में जोड़े जाने वाले प्रत्यय तद्धित (तद्धितान्त) और समास की भी प्रातिपदिक संज्ञा होती है |   

स्वौजसमौट्छष्टाभ्यांभिस्ङेभ्यांभ्यस्ङ्सिभ्यांभ्यस्सोसाम्ङ्योस्सुप्  ४|१|२||    

(सु औ जस् इति प्रथमा विभक्ति | अम् औट् शस् इति द्वितीया | टा भ्याम् भिस् तृतीया | ङे भ्याम् भ्यस् इति चतुर्थी | ङसि भ्याम् भ्यस् इति पञ्चमी | ङस् ओस् आम् इति षष्ठी | ङि ओस् सुप् इति सप्तमी |)

अर्थात् सु से लेकर सुप् तक के प्रत्यय को सुप् के नाम से जाना जाता है या अभिहित किया जाता है | यह 21 होते हैं |

प्रथमा विभक्ति-सु औ जस् |

द्वितीया विभक्ति-  अम् औट् शस्  |

तृतीया विभक्ति-  टा भ्याम् भिस्  |

चतुर्थी विभक्ति- ङे भ्याम् भ्यस्  |

पञ्चमी विभक्ति- ङसि भ्याम् भ्यस् |

षष्ठी विभक्ति-  ङस् ओस् आम् |

सप्तमी विभक्ति-ङि ओस् सुप्  |

 

ङ्याप् प्रातिपदिकात् ४|१|१||

(ङ्यन्तादाबन्तात् प्रातिपदिकञ्च परे स्वादय: प्रत्यया: स्यु: |)

ङ्यन्त (अर्थात् ङीप्, ङीष्, ङीञ् ) आबन्त (डाप्,  टाप् और चाप्) तथा प्रातिपदिक के बाद में सु प्रत्यय जुड़ता है |

प्रत्यय: ३|१|१|    

(आपञ्चमसमाप्तेऽधिकारोऽयम् |)

अष्टाध्यायी में पञ्चम अध्याय पर्यन्त इसका अधिकार सूत्र है |

परश्च ३|१|२||

(अयमपि तथा |)

अर्थात् प्रत्यय बाद में जुड़ता है |

सुप: १|४|१०३||

(सुपस्त्रीणि त्रीणि वचनान्येकश एकवचन-द्विवचन-बहुवचन-संज्ञानि स्यु: |)      

यह 21 प्रत्यय क्रमशः होंगे |

प्रथमा विभक्ति

रमा शब्द की ‘अर्थवदधातुरप्रत्यय: प्रातिपदिकम्’ इस सूत्र से रमा की प्रतिपादिक संज्ञा हो गयी | ‘ङ्याप्प्रातिपदिकात्’ इस सूत्र के अधिकार में ‘स्वजौ...’ इस सूत्र से  प्रथमा विभक्ति एकवचन की विवक्षा में सु प्रत्यय जुड़कर रमा+सु प्रत्यय बना | सु के उकार का उपदेशेऽनुनासिकसूत्र से इत्संज्ञा और तस्य लोप:सूत्र से लोप कर देते हैं | अब यह रमा +स हो गया | ‘हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात् सुतिस्यपृक्तं हल्’ सूत्र से सकार का लोप होकर रमा बना जो प्रथम एकवचन का रूप है |           

रमा शब्द की ‘अर्थवदधातुरप्रत्यय: प्रातिपदिकम्’ इस सूत्र से रमा की प्रतिपादिक संज्ञा हो गयी | ‘ङ्याप्प्रातिपदिकात्’ इस सूत्र के अधिकार में ‘स्वजौ...’ इस सूत्र से प्रथमा विभक्ति द्विवचन की विवक्षा में रमा+औ बना | ‘औङ् आप:’ सूत्र से औ का शी हो जाता है | अब यह रमा + शी बना | ‘‘लशक्व तद्धिते’ सूत्र से शकार का लोप होकर रमा +ई बना | ‘आद्गुण:’ सूत्र से गुण आदेश होकर रमे बना  जो प्रथमा विभक्ति द्विवचन का रूप है |

रमा शब्द की ‘अर्थवदधातुरप्रत्यय: प्रातिपदिकम्’ इस सूत्र से रमा की प्रतिपादिक संज्ञा हो गयी | ‘ङ्याप्प्रातिपदिकात्’ इस सूत्र के अधिकार में ‘स्वजौ...’ इस सूत्र से  प्रथमा विभक्ति बहुवचन की विवक्षा में ‘स्वजौ...’ सूत्र से जस् प्रत्यय जुड़कर रमा+जस् बना | ‘चुटू’ सूत्र से जस् के जकार का लोप होकर रमा+अस् बनता है | ‘प्रथमयो: पूर्वसवर्ण:’ सूत्र से अस् के अकार को दीर्घ होकर रमास् हो गया | अब ससजुषोरु:सूत्र से इसे रमा+रु कर देते हैं | पुन: उपदेशेऽनुनासिकसूत्र से इत्संज्ञा और तस्य लोप:सूत्र से रुकार के उ लोप कर देते हैं |अब यह रमा+र बना | ‘खरवसानयोर्विसर्जनीय”’ सूत्र से रकार को विसर्ग कर रमा: शब्द हो जाता है, जो प्रथमा विभक्ति बहुवचन का रूप है |

सम्बोधन

सम्बोधन विभक्ति प्रथमा एकवचन सबुद्धि संज्ञक हो | सम्बुद्धि का अर्थ है कि- सम्बोधन में आए रमा+सु के उकार का ‘उपदेशेऽनुनासिक’ सूत्र से इत्संज्ञा और ‘तस्य लोप:’ सूत्र से लोप कर देते हैं | अब यह रमा+सु बचता है | इस रमा+स् के सकार की सम्बुद्धि संज्ञा अर्थात् लोप ‘एङह्रस्वात् सम्बुद्धे:’ सूत्र से कर देते और प्रथमा एकवचन हे रमे रूप बना देते हैं |

सम्बोधन द्विवचन में रमा+औ बनता है | ‘औङ आप:’ सूत्र से रमा+शी बना | शी को ‘आद्गुण:’ से गुण आदेश | रमे बना | ‘सम्बुद्धौ च’ सूत्र से हे रमे बना |

 सम्बोधन बहुवचन में रमा+जस् बनता है | ‘चुटू’ सूत्र से जस् के जकार का लोप होकर रमा+अस् बनता है | ‘प्रथमयो: पूर्वसवर्ण:’ सूत्र से अस् के अकार को दीर्घ होकर रमास् हो गया | अब ससजुषोरु:सूत्र से इसे रमा+रु कर देते हैं | पुन: उपदेशेऽनुनासिकसूत्र से इत्संज्ञा और तस्य लोप:सूत्र से रुकार के उ लोप कर देते हैं |अब यह रामा+र बना | ‘खरवसानयोर्विसर्जनीय”’ सूत्र से रकार को विसर्ग कर रमा: शब्द हो जाता है, जो प्रथमा विभक्ति बहुवचन का रूप है | ‘सम्बुद्धौ च’ सूत्र से हे रमे बना |

 द्वितीया विभक्ति

द्वितीया विभक्ति के एकवचन में रमा शब्द में ‘स्वौज......’ सूत्र से अम् जुड़ता है | रमा+अम् | ‘अमि पूर्व:’ सूत्र से रमा का अकार और अम् प्रत्यय का अकार मिलकर ‘रमाम्’ बन गया |

द्वितीया विभक्ति के द्विवचन में रमा शब्द में औट् प्रत्यय जुड़ेगा | रमा +औट् | चुटू सूत्र से औट् के ट् का लोप को जाता है | तब यह रमा +औ बचता है | ‘औङ आप:’ सूत्र से औ को शी हो जाता है | ‘लशक्वतद्धिते’ सूत्र से शी को ई हो जाता है | ‘आद्गुण:’ सूत्र से होकर रमे बना जो द्वितीया द्विवचन का रूप है |

द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में रमा+शस् होगा | शस् प्रत्यय के शकार की ‘लशक्व तद्धिते’ सूत्र से इत्संज्ञा होकर लोप हो गया और रमा+अस् बचा | मिलाने पर रमास् बना | अब ससजुषोरु:सूत्र से इसे रमा+रु कर देते हैं | पुन: उपदेशेऽनुनासिकसूत्र से इत्संज्ञा और तस्य लोप:सूत्र से रुकार के उ लोप कर देते हैं | अब यह रमा+र बना | ‘खरवसानयोर्विसर्जनीय”’ सूत्र से रकार को विसर्ग कर रमा: शब्द हो जाता है, जो द्वितीया विभक्ति बहुवचन का रूप है |

तृतीया विभक्ति

तृतीया विभक्ति के एकवचन में ‘टा’ प्रत्यय जुड़ता है | यह रमा +टा बनता है | ‘चूटू’ सूत्र से टा के स्थान पर आ हो जाता है | ‘आङि आप:’ सूत्र से रमे +आ बना| ‘एचोऽयवायाव:’ से ‘अय’ होकर यह  रमया बना जोकि तृतीया एकवचन का रूप है |        

तृतीया विभक्ति के द्विवचन में रमा+भ्याम् जुड़ता है | मिलाने पर रमाभ्याम् रूप सिद्ध हुआ जो तृतीया विभक्ति द्विवचन का रूप है |

तृतीया विभक्ति के बहुवचन में रमा शब्द में भिस् प्रत्यय जुड़ेगा | रमा+भिस् | मिलाने पर रमाभिस् हो गया | अब ससजुषोरु:सूत्र से इसे रमाभिरु कर देते हैं | पुन: उपदेशेऽनुनासिकसूत्र से इत्संज्ञा और तस्य लोप:सूत्र से रुकार के उ लोप कर देते हैं |अब यह रमाभिर बना | रकार की अवसान संज्ञा होकर रमाभिर् बना   खरवसानयोर्विसर्जनीय”’ सूत्र से रकार को विसर्ग कर रमाभि: शब्द हो जाता है, जो प्रथमा विभक्ति बहुवचन का रूप है |

 चतुर्थी विभक्ति

चतुर्थी विभक्ति के एकवचन में ‘ङे’ प्रत्यय जुड़ता है | रमा+ङे | ‘याडाप:’ सूत्र से याट् का आगम ‘आद्यान्तौ टकितौ’ सूत्र से ङे के पहले होगा | ‘हलन्त्यम्’ सूत्र से टकार की इत् संज्ञा तथा ‘तस्य लोप:’ सूत्र से उसका लोप हो जाएगा | अब यह रमा+या+ङे बचा | ‘लशक्वतद्धिते’ सूत्र से ङ का लोप हो गया | अब यह रमा+या+ए बना | ‘वृद्धिरेचि’ सूत्र से यह रमायै बना | जो चतुर्थी विभक्ति एकवचन का रूप है |     

चतुर्थी विभक्ति द्विवचन में भ्याम् प्रत्यय जुड़ता है | रमा+भ्याम् | मिलाने पर यह रमाभ्याम् रूप बनता है, जो चतुर्थी विभक्ति द्विवचन का रूप है |

चतुर्थी विभक्ति के बहुवचन में भ्यस् प्रत्यय जुड़ता है | रमा+भ्यस् | मिलाने पर रमाभ्यस् बना | ‘इसके सकार को ‘ससजुषोरु:’ सूत्र से रमाभ्यस् के स् को रु कर देते हैं (रमाभ्यरु) | अब रमाभ्यरु के उ को ‘उपदेशेऽजनुनासिक’ सूत्र से इत्संज्ञा हुई और तस्य लोप: से इसका लोप होकर रमाभ्यर रूप बना | रमाभ्यर की अवसान संज्ञा होकर रमाभ्यर् बना | रमाभ्यर् के रकार को ‘खरवसानयोर्विसजनीय:’ सूत्र से विसर्ग होकर ‘रमाभ्य:’ बना | जो चतुर्थी बहुवचन का रूप है |

पञ्चमी विभक्ति

पञ्चमी विभक्ति के एकवचन में ङ्सि प्रत्यय जुड़ता है | रमा+ङसि | ‘याडाप:’ सूत्र से याट् का आगम ‘आद्यन्तौ टकितौ’ सूत्र से ङसि के पहले होगा | अब यह रमा+याट्+ङसि बना | ‘अनुबन्ध लोप:’ सूत्र से रमा +या+अस् हो जाता है | ‘अक: सवर्णे दीर्घ:’ सूत्र से रमायास् बना | अब ससजुषोरु:सूत्र से इसे रमा+रु कर देते हैं| पुन: उपदेशेऽनुनासिकसूत्र से इत्संज्ञा और तस्य लोप:सूत्र से रुकार के उ लोप कर देते हैं |अब यह रमायार बना | रमायार के रकार की अवसान संज्ञा होकर रमायार् बना | खरवसानयोर्विसर्जनीय”’ सूत्र से रकार को विसर्ग कर रमाया: शब्द हो जाता है, जो पञ्चमी विभक्ति बहुवचन का रूप है |

पञ्चमी विभक्ति द्विवचन में भ्याम् प्रत्यय जुड़ता है | रमा+भ्याम् | मिला देने पर रमाभ्याम् रूप बना जो पञ्चमी विभक्ति द्विवचन का रूप है |

पञ्चमी विभक्ति बहुवचन में भ्यस् प्रत्यय जुड़ता है | अब यह रमा+भ्यस् बना | मिला देने पर रमाभ्यस् बना | इसके सकार को ‘ससजुषोरु:’ सूत्र से रु कर दिया अब यह रमाभ्यरु हो गया | रु के उ का ‘उपदेशेऽजनुनासिक और तस्य लोप:’ से लोप कर दिया | अब यह रमाभ्यर बना | रामेभ्यर के र की अवसान संज्ञा होकर रमाभ्यर् बना | ‘खरवसानयोर्विसर्जनीय:’ सूत्र से विसर्ग कर देते है | अब यह रमाभ्य: रूप बना जो पञ्चमी विभक्ति बहुवचन का रूप है |

षष्ठी विभक्ति

षष्ठी विभक्ति एकवचन में ङस् प्रत्यय जुड़ता है | ‘याडाप:’ सूत्र से याट् का आगम ‘आद्यन्तौ टकितौ’ सूत्र से ङस् के पहले होगा | अब यह रमा+याट्+ङस् बना | ‘अनुबन्ध लोप:’ सूत्र से रमा +या+अस् हो जाता है | ‘अक: सवर्णे दीर्घ:’ सूत्र से रमायास् बना | अब ससजुषोरु:सूत्र से इसे रमा+रु कर देते हैं| पुन: उपदेशेऽनुनासिकसूत्र से इत्संज्ञा और तस्य लोप:सूत्र से रुकार के उ लोप कर देते हैं |अब यह रमायार बना | रमायार के रकार की अवसान संज्ञा होकर रमायार् बना | खरवसानयोर्विसर्जनीय”’ सूत्र से रकार को विसर्ग कर रमाया: शब्द हो जाता है, जो पञ्चमी विभक्ति बहुवचन का रूप है |

षष्ठी विभक्ति द्विवचन में ओस् प्रत्यय जुड़ता है | रमा+ओस् | ‘आङि चाप:’सूत्र से रमा के आ को ए कर देते हैं | अब यह रमे +ओस्  बन जाता है | ‘एचोऽयवायाव:’ सूत्र से रम्+अय+ओस् बनता है | मिलाने पर रमयोस् हो जाता है | अब ससजुषोरु:सूत्र से इसे रमयोरु कर देते हैं| पुन: उपदेशेऽनुनासिकसूत्र से इत्संज्ञा और तस्य लोप:सूत्र से रुकार के उ लोप कर देते हैं |अब यह रमयोर बना | रमयोर के रकार की अवसान संज्ञा होकर रमयोर् बना | खरवसानयोर्विसर्जनीय”’ सूत्र से रकार को विसर्ग कर रमयो: शब्द हो जाता है, जो षष्टी विभक्ति द्विवचन का रूप है |

षष्ठी विभक्ति बहुवचन में आम् प्रत्यय जुड़ता है | रमा+आम् | ‘ह्रस्वनद्यापो नुट्’ सूत्र से राम के बाद नुट् का आगम | अब यह रमा +नुट्+आम्  बन गया | हलन्त्यम् सूत्र से नुट् के ट का लोप हो गया | अब यह रमा+नु+आम् बन गया | उपदेशेऽजनुनासिक तथा तस्य लोप: सूत्र से नु के उकार का लोप कर देते हैं | अब यह रमा+न+आम् (रमानाम्) बन गया | ‘अटकुप्वाङ्नुम्व्यवायेऽपि’ सूत्र से नकार णकार हो जाता है | अब यह रमाणाम् बन गया जो षष्ठी विभक्ति बहुवचन का रूप है |         

सप्तमी विभक्ति

सप्तमी एकवचन में रमा+ङि होता है, स्वजौ....सूत्र से | ‘ याडाप:’ से याट् का आगम ‘आद्यान्तौ टकितौ’ सूत्र से ङि के पहले करते हैं | अब यह रमा+याट्+ङि बना | ‘ङेराम्नद्याम्नीभ्य:’ सूत्र से ङि को आम् आदेश हो जाता है | अब यह रमा+याट्+आम् बना | ‘हलन्त्यम्’ तथा तस्य लोप: सूत्र से टकार का लोप होकर रमा+या +आम् बना | मिलाने पर रमायाम् बना जो सप्तमी एकवचन का रूप है |

इसके द्विवचन में ‘स्वजौ...’ सूत्र से  रमा +ओस् होता है | ‘आङि चाप:’सूत्र से रमा के आ को ए कर देते हैं | अब यह रमे +ओस्  बन जाता है | ‘एचोऽयवायाव:’ सूत्र से रम्+अय+ओस् बनता है | मिलाने पर रमयोस् हो जाता है | अब ससजुषोरु:सूत्र से इसे रमयोरु कर देते हैं| पुन: उपदेशेऽनुनासिकसूत्र से इत्संज्ञा और तस्य लोप:सूत्र से रुकार के उ लोप कर देते हैं |अब यह रमयोर बना | रमयोर के रकार की अवसान संज्ञा होकर रमयोर् बना | खरवसानयोर्विसर्जनीय”’ सूत्र से रकार को विसर्ग कर रमयो: शब्द हो जाता है, जो सप्तमी द्विवचन का रूप है |

इसके बहुवचन में ‘स्वजौ...’सूत्र से रमा+सुप् होता है | ‘हलन्त्यम्’ सूत्र से प् को लोप कर देते हैं | मिलाने पर रमासु रूप बना जो सप्तमी बहुवचन का रूप है |       

 



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