बुधवार, 9 मार्च 2022

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा। ॥1॥

अर्थ – जो कुन्द के फूल, चन्द्रमा और बर्फ के समान श्वेत हैं। जो शुभ्र वस्त्र धारण करती हैं। जिनके हाथ उत्तम वीणा से सुशोभित हैं। जो श्वेत कमल के आसन पर बैठती हैं।
ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि देव जिनकी सदा स्तुति करते हैं और जो सब प्रकार की जड़ता का हरण कर लेती हैं, वे भगवती सरस्वती मेरी रक्षा करें।

 

दोर्भिर्युक्ताश्चतुर्भिः स्फटिकमणिमयीमक्षमालां दधाना

हस्तेनैकेन पद्मं सितमपि च शुकं पुस्तकं चापरेण।
या सा कुन्देन्दुशङ्खस्फटिकमणिनिभा भासमाना समाना
सा मे वाग्देवतेयं निवसतु वदने सर्वदा सुप्रसन्ना। ॥2॥

अर्थ – जो चार हाथों से सुशोभित हैं और उन हाथों में स्फटिक मणि की बनी हुई अक्षमाला, श्वेत कमल, शुक और पुस्तक धारण किये हुई हैं।
जो कुन्द, चन्द्रमा, शंख और स्फटिक मणि के समान देदीप्यमान हैं, वे ही ये वाग्देवता सरस्वती परम प्रसन्न होकर सर्वदा मेरे मुख में निवास करें।


सुरासुरसेवितपादपङ्कजा
करे विराजत्कमनीयपुस्तका ।
विरिञ्चिपत्नी कमलासनस्थिता
सरस्वती नृत्यतु वाचि मे सदा ॥3॥
अर्थ : उन माँ सरस्वती आपको नमन है जिनके चरणकमलकी सेवा देवता और असुर दोनों ही करते हैं, जिनके हस्त में एक सुंदर ग्रंथ है , जो ब्रह्मा की संगिनी है और पद्म पर विराजमान हैं | हे माँ आप मेरी वाणी पर सदैव नृत्य करें (अर्थात मेरी वाणी को ओजस्वी बनाएँ ) |


सरस्वती नमस्तुभ्यं, वरदे कामरूपिणी । विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा ॥5॥ ज्ञान की देवी माँ सरस्वती को मेरा नमस्कार, वर दायिनी माँ भगवती को मेरा प्रणाम। अपनी विद्या आरम्भ करने से पूर्व आपका नमन करता हूँ , मुझ पर अपनी सिद्धि की कृपा बनाये रखें ।




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