‘सूर्यायते नभ:’ : भावनाओं का कोलाज
संस्कृत कविता समय के साथ सतत करवट बदलती रही है और
वैश्विक चेतना से भी प्रभावित होती रही है । ‘सूर्यास्त नभ:’ इसी बात का हस्ताक्षर है । इस काव्य-संग्रह में सनातन मानवीय संवेदनाओं को प्रतीक, पुराकल्पन जैसी वैश्विक संज्ञाओ
से प्रगट किया है ।
डॉ.रीता त्रिवेदी लिखती हैं कि समय बलवान होता
है वह किसी को भी नहीं छोड़ता ।
वासुकिस्त्वां
पश्यति
घटिका
यन्त्रे....।
डॉ.त्रिवेदी की कविता को संयोग और वियोग दोनों
ही श्रृंगार रस दृष्टिगोचर होते हैं ।
तथा
च
उपविष्टाहं
मम
वातायने,
भवत:
आगमनस्य
प्रतीक्षांजनम्
अंजयित्वा
मम
नयनयो:।
प्रिय
!आवेदनाम्हम्!
उद्घाटय
तव
चक्षुद्वारम्!
अहमिच्छामि
रच्यितुं
मम
सिन्दूररेखम् ।
एक प्रश्न जो युगों-युगों से शोध का विषय बना
हुआ है कि आखिर सारा दोष क्या अहिल्या का था । इन्द्र दोषी नहीं थे क्या? अहिल्या को ही गौतम ने क्यों श्राप दिया? उस पर
प्रश्न खड़ा करते हुए डॉ.रीता त्रिवेदी कहती हैं-
न
जानाम्यहम्
ऐन्द्रजालबन्धनम्
।
किन्तु
ज्ञानवृद्ध:
त्वम् ।
व्यक्ति अपने मन की हर बात सबसे नहीं बताना
चाहता । कवयित्री कहती है कि- मुझे उन भूली बिसरी स्मृतियों की याद मत दिलाओ ।
वयस्य!
मा
पृच्छ
सा
कथा ।
प्रत्येक व्यक्ति को अन्याय का विरोध करना आना
चाहिए । कभी सच बोलने में दबना नहीं चाहिए । कवयित्री कहती है कि -
यत:
आवृत्ताडहम्
शब्दकवचेन
।
कथं
भीत:
समाजस्य!
दिनों दिन बढ़ते जलवायु परिवर्तन को लेकर
कवयित्री चिन्तित है ।
धूलि:
नभो
मंडले
क्व
सूर्य:
गच्छ्ति,
क्व
विहगा:
।
कविता का आश्रय लेकर डॉ.रीता त्रिवेदी कहती
हैं कि- हे कविते मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करती रहती हूँ कि तुम मेरे जेहन में आओ ।
आगच्छ
!
आगच्छ!
हे
वरदायिनि!
मरुतृषाम्
अवधार्य
प्रतिक्ष्यामि,
हे
कविते !
इनकी कविताओं में जीवन दर्शन भी नजर आता है ।
वह लिखती हैं कि यह जीवन एक जल बिन्दु के
सादृश्य है । जीवन की निस्सारता के विषय में कवयित्री कहती है-
जगदिदं
रममाणं,
न
जानाति
हिमकणस्य
सत्यम्
।
कुछ लोगों को भाग्य पर बड़ा भरोसा होता है ।
कर्म करने की अपेक्षा वह दिन-रात हस्तरेखा विचारा करते हैं ।
सुखस्य
व्याख्यां
बोधयितुं
शकनोसि
किम्!
अन्य रचनाकारों की तरह ही कवयित्री रीता की भी
इच्छा ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की है ।
रटय......रटय.....केवलम्
ॐशम्.......ॐशम्...........ॐशम्
।।
इन मुक्त छ्न्द कविताओं के साथ-ही-साथ
कवयित्री मम रथ्यायाम्, हे हंसवाहिनि जैसे गीत भी
लिखती नजर आती हैं तो हायकू जैसी विदेशी काव्य विधा को रचने में भी वह सिद्धहस्त
हैं। इस काव्य संग्रह में कुल 24 कवितायें हैं ।
समीक्षक-डॉ. अरुण कुमार निषाद
कृति
- ‘सूर्यायते नभ: ’ काव्य संग्रह ।
कृतिकार
–
डॉ.रीता त्रिवेदी
प्रकाशक
–साहित्य संगम प्रकाशन, सूरत (गुजरात) ,
प्रथम संस्करण 2010 ,
मूल्य- 120 रू.,
पृष्ठ-84
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