उपनिषदों
आत्मा,परमात्मा,पुनर्जन्म आज का सम्यक् विवेचन उपनिषदों में हुआ है । वस्तुतः आत्मा एवं परमात्मा ब्रह्मा का चिंतन एवं मनन ही उपनिषदों की आधारशिला है ।प्राधान्यत: ब्रह्मा चिंतन के संदर्भ में उन सभी तत्वों का चिंतन हो जाता है जो मोक्ष के लिए आवश्यक है ।उपनिषदों के लिए प्रयुक्त ब्रह्मविद्या शब्द उक्त कथन की पुष्टि करता है।
मानव जीवन का चरम लक्ष्य मोक्ष है और वह मोक्ष ज्ञान के बिना संभव नहीं है "लते ज्ञानान्न मुक्ति:"। जीवात्मा तथा परमात्मा में वास्तविक रूप से अभिन्नता है परंतु अज्ञान अथवा माया के कारण मानव इस तत्व (यथार्थ ) को समझने में असमर्थ हो जाता है। उपनिषद ऐसे ज्ञान का प्रतिपादन करते हैं जिसके द्वारा मनुष्य को वास्तविक ज्ञान हो जाए और वह अपने को समझ सके। यही आत्मज्ञान आत्मा के स्वरूप का ज्ञान मोक्ष का मूल है । उपनिषदों में ब्रह्म तत्व का नाना प्रकार से प्रतिपादन किया गया है और उसकी प्राप्ति के विभिन्न मार्गो अथवा साधनों का भी वर्णन है। परंतु लक्ष्य बहुत ब्रह्मा (ब्रम्ह प्राप्ति) एक है भले ही उसकी प्राप्ति अथवा ज्ञान के साधन अनेक हों।
यद्यपि स्थूल रुप से प्रतिपाद्य को दृष्टिगत कर उपनिषदों का श्रेणी विभाजन किया जा सकता है और उन्हें ज्ञान एवं साधना (उपासना ) आदि से संबद्ध किया जा सकता है परंतु सूक्ष्म रूप से सबका गंतव्य एक ही है।
आत्मा,परमात्मा,पुनर्जन्म आज का सम्यक् विवेचन उपनिषदों में हुआ है । वस्तुतः आत्मा एवं परमात्मा ब्रह्मा का चिंतन एवं मनन ही उपनिषदों की आधारशिला है ।प्राधान्यत: ब्रह्मा चिंतन के संदर्भ में उन सभी तत्वों का चिंतन हो जाता है जो मोक्ष के लिए आवश्यक है ।उपनिषदों के लिए प्रयुक्त ब्रह्मविद्या शब्द उक्त कथन की पुष्टि करता है।
मानव जीवन का चरम लक्ष्य मोक्ष है और वह मोक्ष ज्ञान के बिना संभव नहीं है "लते ज्ञानान्न मुक्ति:"। जीवात्मा तथा परमात्मा में वास्तविक रूप से अभिन्नता है परंतु अज्ञान अथवा माया के कारण मानव इस तत्व (यथार्थ ) को समझने में असमर्थ हो जाता है। उपनिषद ऐसे ज्ञान का प्रतिपादन करते हैं जिसके द्वारा मनुष्य को वास्तविक ज्ञान हो जाए और वह अपने को समझ सके। यही आत्मज्ञान आत्मा के स्वरूप का ज्ञान मोक्ष का मूल है । उपनिषदों में ब्रह्म तत्व का नाना प्रकार से प्रतिपादन किया गया है और उसकी प्राप्ति के विभिन्न मार्गो अथवा साधनों का भी वर्णन है। परंतु लक्ष्य बहुत ब्रह्मा (ब्रम्ह प्राप्ति) एक है भले ही उसकी प्राप्ति अथवा ज्ञान के साधन अनेक हों।
यद्यपि स्थूल रुप से प्रतिपाद्य को दृष्टिगत कर उपनिषदों का श्रेणी विभाजन किया जा सकता है और उन्हें ज्ञान एवं साधना (उपासना ) आदि से संबद्ध किया जा सकता है परंतु सूक्ष्म रूप से सबका गंतव्य एक ही है।
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