शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

विश्वास


विश्वास ही वह शक्ति है जिसके सहारे हम बड़ा-से-बड़ा कार्य कर सकते हैं.जहां विश्वास नहीं वहां झगड़ा लड़ाई कलह उत्पन्न हो जाता हैं.विश्वास एक मेरुदण्ड है जिसके सहारे समाज और परिवार चल रहा है.प्राचीनकाल में गुरु शिष्य पर विश्वास करके ही उसे विद्या दान करते थे.माता पिता को एक विश्वास ही होता था कि मेरी संतान बुढ़ापे में मेरा सहारा होगी.परीक्षार्थी यह विश्वास लेकर ही परीक्षा देने जाता है कि उसको परीक्षा में सफल होना है और इसी विश्वास के बलबूते वह अपनी सफलता को प्राप्त भी कर देता है.परन्तु भौतिकता भरे इस युग में लोगों का एक दूसरे से विश्वास खत्म होता जा रहा .कौन अपना है कौन पराया.कौन मित्र है कौन शत्रु इसकी पहचान करना कठिन हो गया है.आज माता पिता अपने बच्चे पर बच्चे अपने माता पिता पर विश्वास नहीं कर पा रहे हैं.यही कारण है कि बच्चे आज चिड़चिड़े हो रहे हैं.पति अपनी पत्नी पर विश्वास नहीं कर पा रहा है.पत्नी अपने पति पर कि उसका पति उसके प्रति कितना वफादार है.प्रेम के स्थान पर वासना का बोलबाला हो गया है.अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिये आदमी तुच्छ -से-तुच्छ कार्य करने में भी नहीं शरमा रहा है.